खुद के लिए खुद ही चुनना पड़ता है
जैसे -जैसे हमारा जीवन बीतता जाता है, वैसे – वैसे नये-नये अनुभव हमारे सामने एक के बाद एक आकर खड़े हो जाते हैं। कुछ कड़वी तो कुछ मीठी यादें भी अपना घर समझकर, मन के किसी हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। हम चाहे कितनी कोशिश कर लें, वर्तमान में जीने की पर यथार्थ से सब परिचित हैं कि हम आज में कुछ प्रतिशत ही जी पाते हैं। हमारा कुछ समय पर भविष्य और कुछ पर बीता हुआ कल कब्जा किए रहता है।
खैर,आज मैं केवल एक बात कहना चाहती हूं,एक सवाल अक्सर मेरे ज़हन में उठता है कि दुनिया, हमारा काम, हमारी परिस्थितियां हमें अच्छा-बुरा अनुभव देती ही रहती हैं। पर ये चुनाव सदैव हमारा ही होता है कि हम किस अनुभव से क्या सीख लेते हैं और उसे अपने जीवन में कैसे उतारते हैं। और कहीं न कहीं ये निर्णय भी हमारा ही होता है कि भविष्य में भी हम अपने किस अनुभव के साथ, किस प्रकार आगे बढ़ेंगे।एक समस्या मेरे साथ अक्सर होती है और शायद आपके साथ भी होती ही होगी। मैं बीता हुआ कल और उसके बुरे अनुभव भूल नहीं पाती। मुझे कभी न कभी जीवन के किसी न किसी मोड़ पर ये बात याद आ ही जाती है कि मेरे साथ जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था।
लेकिन एक सच ये भी है कि हम सच को बदल नहीं सकते। जो भी अच्छा या बुरा हमारे साथ घटित हुआ है, उसमें बिना किसी हेर-फेर के हर हाल में हमें उसे स्वीकारना पड़ता है। यहां भले ही हम मौजूदा स्थिति में कोई बदलाव न कर सके, पर अपने नजरिए में बदलाव अवश्य कर सकते हैं। उदाहरण स्वरुप हम एक रास्ते पर चल रहे हैं,जहां एक ओर सुगंधित पुष्प हैं, मंद-मंद चलने वाली ठंडी हवा है और प्रकृति के सुंदर दृश्य हैं। वहीं दूसरी ओर सड़ा कचरा जो अपनी बदबू से वातावरण को खराब कर रहा है।
अब यहां चुनाव हमारा है कि हमें अपने जीवन में सुगंधित पुष्पों मतलब अच्छे अनुभवों को रखना है या बदबूदार मतलब बुरे अनुभवों को। फैसला हमारा है और उसी के आधार पर बढ़ता हुआ जीवन भी हमारा है। मैं कोशिश कर रही हूं उस सुगंध की ओर जाने की जो अपनी उपस्थिति से मेरे जीवन को भी महकाएगी।
— अंकिता जैन अवनी