गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इश्क़ में ठोकरें रोज़ खाते रहे।।
ग़म हमें ज़िंदगी भर सुहाते रहे।

चाहतों की हमें छाँव अच्छी लगी।
हम उन्हें दर्द में भी हँसाते रहे।।

बात – बेबात धोखा हमें दे दिया।
अब तलक देख आँसू बहाते रहे।

प्यार पर वे हमारे मिटे ही हुये।
देख फिर दूरियाँ ही बढ़ाते रहे।।

ये गरीबी हमें दे रही मात ही।
मुफ़लिसी देख फिर भी निभाते रहे।

पार सीमा करें देश की शत्रु ही।
हार कर घात फिर भी लगाते रहे।।

सुन अभी तो तमन्ना हमारी यही।
गा सकें हम वही गीत गाते रहे ।।

लाख कोशिश रही हम बनें बावफ़ा।
वो हमें आज भी आज़माते रहे।

ज़िंदगी चार दिन की सुहानी कटे।
अब तलक बात वो ही भुलाते रहे।

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’

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