ग़ज़ल
हाथ में हाथ दो तो सही
साथ मैं हूँ चलो तो सही
आप बैठे हैं ख़ामोश क्यों
सुन रहे हैं, कहो तो सही
दो बदन, एक जां, एक रूह
कृष्ण-राधा बनो तो सही
तल्ख़ियाँ ख़त्म हो जाएंगी
कुछ कहो, कुछ सुनो तो सही
हर तसव्वुर की ताबीर हूँ
ख़्वाब तुम इक बुनो तो सही
चाँदनी, चाँद, ‘पूनम’ की शब
और मैं हूँ, रुको तो सही
— डॉ पूनम माटिया