कविता

दौर ए धोखा

ऐसे दौर में हैं, जहां
मुस्कानें भी मुखौटे हो गईं,
चुप्पियाँ भी साजिशें बुनने लगीं,
जहां दोस्ती का रंग अब,
पल भर में ज़हर हो जाए।

कौन अपना, कौन पराया,
किस पर ऐतबार करें,
यहाँ हर हँसी के पीछे,
एक ख़ंजर छुपा बैठा है।

राहें तो वही हैं, मगर,
अब कदमों की आहटें बदल गईं,
साये भी साथ छोड़ने लगे,
और रिश्ते बस नाम के रह गए।

यहाँ आँखों में आँसू नहीं,
बस इरादों का तेज़ाब है,
सामने बैठा शख़्स,
दोस्त है कि सांप,
कह पाना मुश्किल है।

— प्रियंका सौरभ

*प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) facebook - https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/ twitter- https://twitter.com/pari_saurabh

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