हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – महज कहानी है

अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस विशेष (15 मई)

आइए! एक और दिवस की औपचारिकता निभाते हैं राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस मनाते हैं।क्योंकि बस यही तो हमारे हाथ में है परिवार हमसे और हम परिवार से कोसों दूर हैं हम हों या आप, दूरियाँ बढ़ाते जा रहें हैं।मेरी बातें आप को अभी से चुभने लगी हैइसका मतलब है, मेरी बात सही होने जा रही है।वास्तव में जो मैं कहने जा रहा हूँसच कहूँ तो मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा है अपनों की शिकायत अपनों से ही कर रहा हूँ,खुद के साथ अपनों को ही नंगा कर रहा हूँआखिर मैं भी तो परिवार दिवस मना रहा हूँ।कहाँ है, किसका है परिवार जरा हमें भी बताइए महज चंद अपवादों को छोड़कर आज जरा कोई ऐसा परिवार तो बताइए, जिसमें अपने बीबी बच्चों के अलावा ताई-ताऊ, चाचा-चाची, दादा -दादीऔर नौनिहालों की फौज साथ-साथ रह रहे हों।सच तो यह है कि हमारे अपने माँ-बाप भी विवशतावश ही हमारे साथ रहते हैं,साथ होने की सजा भी तो सह रहे हैं अपमान, तिरस्कार, उपेक्षा और जाने क्या कुछ नहीं सह रहे हैं।क्या और साफ-साफ कहने की जरूरत है?यदि हाँ तो अनाथालयों/वृद्धाश्रमों में इतनी भीड़ का आखिर हिस्सा कौन हैं?क्या वास्तव में इन सबके आगे-पीछे कोई नहीं है या फिर हमारी आँख का पानी सूख गया है।निजता की आड़ में, स्वतंत्रता की चाह में, बढ़ते खर्चों के साथ तरह – तरह के बहानों के साथ बढ़ती बेशर्मी, आधुनिकता का दंभ, सेवा-सत्कार से मुँह चुराने की बढ़ती प्रवृत्ति, अपने ही भाई-बहनों से ईर्ष्यास्टेटस का डर, बढ़ती स्वार्थी प्रवृत्ति धन- संपत्ति, जमीन-जायदाद का लोभऔर तरह-तरह की नाटकीयता हमें परिवार विहीन बना रही है,जाने कितने अपनों को लावारिसों की तरह मौत के मुँह में जबरन ढकेल रही है,और हमें बेहया बेशर्म बना रही है।फिर आप ही बताइए!आखिर परिवार दिवस का क्या मतलब है?ऊपर से अंतरराष्ट्रीय दिवस तो महज ढकोसला है पड़ोसी मुल्कों में संबंध कैसा है?आप भी जानते हैं सबका अपना-अपना किस्सा है,जब हम एक परिवार नहीं सहेज पा रहे हैं,तब विश्व परिवार की संकल्पना क्यों कर रहे हैं शायद हम खुद को बरगला रहे हैं।या हम मुल्कों के बीच छिड़े संघर्ष को देख नहीं पा रहे?धर्म, जाति, भाषा, सीमा विवाद नित गहराते जा रहे हैं एक देश के लोग दूसरे देश में अस्थिरता, अराजकता, आतंकवाद, हिंसा फ़ैला रहे हैं,बिना किसी संकोच लोगों को मार-काट रहे हैं,थोक भाव में लाशें गिराने से कहाँ झिझक रहे हैं।आपसी सामंजस्य बढ़ाने के बजाय छोटी-छोटी बातों को बेवजह तूल दे रहे हैं,जिसके परिणाम नित हिंसक होते जा रहे हैं,वैमनस्यता का नये इतिहास गढ़ते जा रहे हैं।हर घर परिवार की एक सी कहानी है परिवार दिवस हो अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस की बात आप मानो न मानो सिर्फ़ बेमानी है,महज कहने सुनने में अच्छी लगने वाली एक कहानी है।

— सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921

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