सपनों की दुनिया
मैं भी बुन रखी थी
अपने सपनों की एक दुनिया
एक झोंका ऐसा आया
बिखर गए सारे धागे
कुछ न बचा सिवाय
एक रीतापन के;
काश मैं भी होती एक चिड़िया
फिर से सजाती अपना घोंसला
एक -एक कर चुनती बिखरे तिनकों को
खड़ी कर लेती
अपनी अलग एक,
सपनों की दुनिया
— निर्मल कुमार दे