कविता

वो क्या जाने

हां वो जूझते आया है
प्रारंभ से आज तक और
अनवरत जूझ ही रहा है,
लचर व्यवस्था से,सरकारी नीयत से,
सीमित नहीं है उनका जूझना
कलम,कॉपी,स्लेट या किताब से,
पड़ रहा है जूझना उनके हवस बेहिसाब से,
दमखम दिखलाती है जब
पढ़ना पड़ता है मजबूरियों को,
किताबों से बढ़ती नौनिहालों की दूरियों को,
पढ़ना पड़ता है हालातों को,
शिक्षा के प्रति जज्बातों को,
गुजरना पड़े कोमल पांव को कीचड़ से,
तो ख्वाब रह जाते हैं सिर्फ ख्वाब,
कीचड़ को पढ़ रहे मासूमों को
कौन दे उचित जवाब,
तब नदारत नजर आते हैं
ढोल पीटकर अपनी बखान करते जिम्मेदार,
अपने अनुसार व्यवस्था चला जो
हो चुके हैं पूरी तरह बेकार,
उन्हें फुर्सत है मदिरालय में मदिरा बढ़ाने की,
नई दुकानें खोल जाने की,
मगर लोग क्यों भूल जाते हैं कि
जिंदगी के रास्ते और ज्ञान का ककहरा
के लिए है सिर्फ एक ही रास्ता विद्यालय,
जो खोल देता है तमाम रास्ता जहां
उम्र के हर पड़ाव पर जीने की राह है,
शिक्षा का महत्व वो क्या जाने,
जो तुले रहते हैं ज्ञान की प्रयोगशाला में
ताले पर ताला लगाने,
तालीम क्या है,
वो क्या जाने,
वो क्या जाने।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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