नज़ाकत’, ‘नूर’, ‘जल्वा’, ‘शबाब’, ‘आराइश’, ‘मासूमियत’, और अदाएं’
हुस्न यानी सुंदरता, हमेशा से शायरों और साहित्यकारों का पसंदीदा विषय रहा है। उर्दू शायरी में हुस्न की तारीफ को बेहद खास और दिलकश अंदाज में पेश किया गया है। शायरों ने हुस्न को सिर्फ चेहरे की खूबसूरती तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसकी मासूमियत, नज़ाकत, अदाओं और उसकी रूहानी चमक को भी अपने अल्फाज़ों में पिरोया है।
हुस्न के बारे में कहा गया है कि उसकी असली झलक सिर्फ देखने में नहीं, बल्कि महसूस करने में है। उसकी नज़ाकत, उसकी सादगी, उसकी मुस्कान,सब कुछ किसी न किसी शेर में बयां होता है।
शायरी में हुस्न को कभी आफ़त, कभी क़यामत, तो कभी खुदा की बनाई सबसे हसीन चीज़ कहा गया है। शायर कहते हैं,
हुस्न की तारीफ में उर्दू के अल्फाज़ जैसे ‘नज़ाकत’, ‘नूर’, ‘जल्वा’, ‘शबाब’, ‘आराइश’, ‘मासूमियत’, ‘अदाएं’ आदि का खूब इस्तेमाल होता है, जो शायरी को और भी दिलकश बना देते हैं।
हुस्न पर बेहतरीन शेर और उनके शायर।
- “किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी”
— फ़िराक़ गोरखपुरी - “तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है”
— साहिर लुधियानवी - “उस हुस्न के सच्चे मोती को हम देख सकें पर छू न सकें
जिसे देख सकें पर छू न सकें वो दौलत क्या वो ख़ज़ाना क्या”
— इब्न-ए-इंशा - “इश्क़ का ज़ौक़-ए-नज़ारा मुफ़्त में बदनाम है
हुस्न ख़ुद बे-ताब है जल्वा दिखाने के लिए”
— असरार-उल-हक़ मजाज़ - “हम अपना इश्क़ चमकाएँ तुम अपना हुस्न चमकाओ
कि हैराँ देख कर आलम हमें भी हो तुम्हें भी हो”
— बहादुर शाह ज़फ़र - “हुस्न आफ़त नहीं तो फिर क्या है
तू क़यामत नहीं तो फिर क्या है”
— जलील मानिकपूरी - “तुम्हारा हुस्न आराइश तुम्हारी सादगी ज़ेवर
तुम्हें कोई ज़रूरत ही नहीं बनने सँवरने की”
— असर लखनवी - “आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न
आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए”
— हसरत मोहानी
ये शेर उर्दू शायरी की खूबसूरती और हुस्न की तारीफ का बेहतरीन उदाहरण हैं।
हुस्न पर लिखी गई उर्दू शायरी सिर्फ तारीफ नहीं, बल्कि एक एहसास है, जिसमें सौंदर्य के हर रंग और हर पहलू को अल्फाज़ों में ढाल दिया गया है।
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह सहज