माँ
माँ जैसा जग में किसी का नहीं होना।
माँ कहती रात होते घर लौट आना।।
बाहर हमेशा कुछ खा कर ही जाना।
बाहर की चीजें कभी भूल के न खाना।।
परेशानिओं को बिन बताये ही समझ जाना।
तुम्हें नहीं पता तुम में ही उसका जान बसना।।
बड़े होने पर भी तुम्हें बच्चा समझना।
सम्भव नहीं होता उसके प्यार को आंकना।।
संतोष होता ख़ुद न खा कर तुझे खिलाना।
चाहती नये वस्त्रों में तुझे देखना खुद फटेहाल रहना।।
उसकी दुनिया का तुम तक ही सिमट जाना।
स्वयं के लिए कुछ भी नहीं सोचना।।
उस ममता की मूरत का क़भी दिल न दुखाना।
ऐसा करना खुद को होता सजा देना।।
भारी लगता उसका सब को उसका वृद्ध होना।
नहीं चाहती बहुत कुछ बस प्यार और सम्मान पाना।।
— मंजु लता