गीतिका
अहंकार की विष बेल ने कब अमृत बरसाया है ,
बूढा हुआ बरगद तो क्या, छाया से अपनी महकाया है।
सतयुग हो या द्वापर युग त्रेता युग हो या कलयुग ,
झूठे अहंकार ने पृथ्वी पर सबका गर्व ढहाया है ।
जीवन है एक पाठशाला मृत्यु जीवन का अमिट सत्य ,
जानकर भी परम सत्य को इंसा अहम में भरमाया है ।
रावण जैसा वीर पराक्रमी मिट गया झूठे अहम में ,
दुर्योधन के सत्य ने भी इतिहास का सच समझाया है ।
न कुछ तेरा न कुछ मेरा दुनिया है एक रैन बसेरा ,
तज दे अपने अहम को प्राणी ये जीवन सिर्फ मोह माया है ।
अहंकार की विष बेल ने कब सत्य का पथ दिखाया है ,
प्रेम ही है जीवन का शाश्वत सत्य कृष्ण ने यही समझाया है ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़