सामाजिक

सोशल मीडिया की चकाचौंध एक मृग मरीचिका की तरह है।

आज के समय में सोशल मीडिया की चकाचौंध ने लोगों को बहुत प्रभावित किया है। लोग अक्सर वास्तविकता और कल्पना के बीच का अंतर भूल जाते हैं और भ्रम के मायाजाल में फंस जाते हैं।

लोगों को मीडिया साक्षरता के बारे में शिक्षित करना जरूरी है, 

मीडिया और सोशल मीडिया की चकाचौंध एक मृग मरीचिका की तरह है।

तरीके से समझ सकें और उसका विश्लेषण कर सकें।लोगों को वास्तविकता के साथ जुड़ने की जरूरत है, जैसे कि प्रकृति के साथ समय बिताना, वास्तविक लोगों से मिलना, और वास्तविक अनुभव करना।ध्यान और आत्म-चिंतन से लोगों को अपने विचारों और भावनाओं को समझने में मदद मिल सकती है और वे भ्रम के मायाजाल से बाहर निकल सकते हैं।

मीडिया और सोशल मीडिया की चकाचौंध एक मृग मरीचिका की तरह है।

आज के समय में मीडिया और सोशल मीडिया ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया है। हमारा अधिकांश समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बीतता है, जहाँ हम जानकारी प्राप्त करते हैं, मनोरंजन करते हैं, और दूसरों के साथ जुड़ते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि यह चकाचौंध हमें कहाँ ले जा रही है?

मीडिया और सोशल मीडिया की दुनिया में हमें अक्सर वास्तविकता और कल्पना के बीच का अंतर भूलने की आदत हो जाती है। हम भ्रम के मायाजाल में फंस जाते हैं और सच्चाई को भूल जाते हैं। यह चकाचौंध हमें एक मृग मरीचिका की तरह लगती है, जो हमें आकर्षित करती है लेकिन हमें कहीं नहीं ले जाती।

इस मृग मरीचिका से बाहर निकलने के लिए हमें मीडिया साक्षरता की आवश्यकता है। हमें जानकारी को सही तरीके से समझने और उसका विश्लेषण करने की जरूरत है। हमें वास्तविकता के साथ जुड़ने की जरूरत है, जैसे कि प्रकृति के साथ समय बिताना, वास्तविक लोगों से मिलना, और वास्तविक अनुभव करना।समालोचनात्मक सोच का विकास भी हमें इस मृग मरीचिका से बाहर निकलने में मदद कर सकता है। हमें जानकारी को सही तरीके से समझने और उसका मूल्यांकन करने की जरूरत है। ध्यान और आत्म-चिंतन भी हमें अपने विचारों और भावनाओं को समझने में मदद कर सकते हैं और हमें भ्रम के मायाजाल से बाहर निकाल सकते हैं।

हमें इस मृग मरीचिका से बाहर निकलने की जरूरत है और वास्तविकता के साथ जुड़ने की जरूरत है। हमें सच्चाई को ढूंढने की जरूरत है और भ्रम के मायाजाल से बाहर निकलने की जरूरत है। तभी हम एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जीने में सक्षम हो पाएंगे।

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- dr.m.a.shaholo2@gmail.com , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,

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