सामाजिक

अच्छे लोगों पर एतमाद करना सीखें

हमारी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा दो मरहलों में गुज़र जाता है।
एक तरफ़ हम ग़लत लोगों से उम्मीदें जोड़ लेते हैं और बार-बार मायूस होते हैं,
दूसरी तरफ़ जब अच्छे लोग मिलते हैं, तो पिछले तजुर्बों की वजह से उन पर भी शक करने लगते हैं।
यह इंसानी फ़ितरत है कि हम अपने तजुर्बों की बुनियाद पर फैसले करते हैं,
लेकिन असल दानिशमंदी यही है कि हम गुजरे हुए वक्त से सीखें,
मगर हर इंसान को उसके अपने अमल से परखें।
ज़िंदगी की खूबसूरती इसी में है कि हम उम्मीद रखना न छोड़ें,
और अच्छे लोगों पर एतमाद करना सीखें।
याद रखें, हर इंसान एक नया मौका है,
और हर रिश्ता एक नई उम्मीद।
कैसे अपनी उम्मीदों को सही लोगों से जोड़ें?
यह एक बहुत अहम और नाज़ुक सवाल है।
सही लोगों से उम्मीदें जोड़ना ज़िंदगी में सुकून और खुशी लाता है,
जबकि ग़लत लोगों से उम्मीदें अक्सर दिल-टूटने और मायूसी का सबब बनती हैं।
यहाँ कुछ अमली मश्वरे दिए जा रहे हैं, जो आपको इस मामले में मदद कर सकते हैं:

  1. लोगों को वक्त दें,
    किसी भी इंसान की असल शख्सियत वक्त के साथ सामने आती है।
    ज़ल्दबाज़ी में किसी पर एतमाद न करें, बल्कि वक्त के साथ उनके रवैये और अमल को देखें।
  2. अल्फ़ाज़ नहीं, अमल देखें,

लोग बहुत कुछ कह सकते हैं,
मगर असल शख्सियत उनके अमल से ज़ाहिर होती है।
जो शख़्स मुश्किल वक्त में आपके साथ खड़ा हो,
उस पर उम्मीद रखना ज्यादा मुनासिब है।

  1. छोटी बातों में एतमाद आज़माएँ
    किसी पर मुकम्मल भरोसा करने से पहले छोटी-छोटी बातों में उसका इम्तिहान लें।
    देखें कि वह आपकी छोटी उम्मीदों पर पूरा उतरता है या नहीं।
  2. अपनी तवक्को (उम्मीदें) वाज़ेह रखें
    अपनी उम्मीदें और तवक्को साफ़ रखें,
    और दूसरों से भी साफ बात करें कि आपको किस चीज़ की उम्मीद है।
    ग़लत फ़हमियाँ अक्सर तवक्को के गैर-वाज़ेह होने से पैदा होती हैं।
  3. अपनी ख़ुद-एतमादी मज़बूत करें।
    हम अक्सर दूसरों से उसी वक्त ज्यादा उम्मीदें जोड़ते हैं,
    जब हमें ख़ुद पर एतमाद कम होता है।
    अपनी खुद-एतमादी को मज़बूत बनाएं
    ताकि आपको दूसरों पर ज़रूरत से ज़्यादा इनहिसार न करना पड़े।
  4. तजुर्बात से सीखें,
    माज़ी के तज़ुर्बत को अपनी रहनुमाई बनाएं,
    मगर हर नए इंसान को एक नया मौक़ा दें।
    हर कोई एक जैसा नहीं होता।
  5. दुआ और मुसबत सोच,
    अल्लाह से दुआ करें कि वह आपको अच्छे लोगों से मिलाए,
    और आपको सही फ़ैसले करने की तौफीक़ दे।
    मुसबत सोच रखें और ज़िंदगी में अच्छे लोगों की क़द्र करें।
    याद रखें,
    सही लोगों से उम्मीदें जोड़ना एक मुसलसल सीखने का अमल है।
    वक्त, तज़ुर्बा और मुशाहिदा आपको इसमें माहिर बना देते हैं।

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।