अब थक गया हूँ मैं
चलते हैं हम हँसते-हँसते, भीतर टूटी है साँसे,
चेहरों पर तो रोशनी है, मन में बुझती है आशाएँ।
जीवन की डोर मे बंधी है, एक नई खूबसूरत सपनें,
दिल मे तड़प है, आँखों में है आंसुओं की बौछारे।
हर कोई कहता है “तू कर लेगा”,
पर कोई नहीं पूछता ” तू कैसे रहेगा?”
हर दिन एक नया इम्तिहान देना है मुझको,
हर रात अधूरी सी पहचान करनी है मुझको।
पढ़ाई की दौड़ में, नौकरी की आग में,
सपनों की गलियों में फैला है धुआँ – धुआँ।
दिल चाहता है उड़ना नीले आसमानों में,
पर ज़मीन से बँधा हुआ है तेरा वज़ूद कहाँ ?
प्यार में धोखे मिले, रिश्तों में छल मिला,
कुछ नहीं बदला है, सिर्फ बदला है कल यहाँ।
सोशल मीडिया की भीड़ में खोई है दुनिया कहाँ,
सच्चे रिश्ते अब मिलते नहीं इस धोखेबाज कलियुग में।
भीतर कुछ कहता है “अब थक गया हूँ मैं,”
पर होंठ मुस्काते हैं क्योंकि “मैं तो ठीक हूँ।”
आँखों में जो पानी ज़माने से थमा है आज,
वो हर रात चुपके से नदियों की तरह बहता है।
फिर भी सुबह उठते ही,
फिर नए ख़्वाब बुनते हैं।
यही तो जज़्बा है युवा दिल की,
जो टूटकर भी चुपचाप जुड़ते है।
— रूपेश कुमार