कविता
खुद को पाना कितना मुश्किल है ।
मंजिल को किनारा मिलना कितना मुश्किल है ।
सही राह चुनना कितना मुश्किल है।
सही पथप्रदर्शक ढूंढना कितना मुश्किल है ।
चुनौतियों का सामना करना कितना मुश्किल है ।
खुद को मंजिल तक पहुंचाना कितना मुश्किल है।
दुनिया में सही व्यक्ति का मिलना कितना मुश्किल है ।
लाखों चेहरों में से सही चेहरा ढूंढना कितना मुश्किल है ।
हर तरफ बिखरे कांटो में से एक फूल पाना कितना मुश्किल है ।
डूबते तिनकें को सहारा मिलना कितना मुश्किल है!
— गंगा मांझी