गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अब अमीरों के भी घर में खुदकुशी होने लगी,
इस मौहब्बत की कमी से हर कमी होने लगी।

फूल नक़ली भी यहां बिकते हैं ऊंचे दाम पर,
अस्ल फूलों की कि अब इतनी कमी होने लगी।

इस ज़ईफ़ी में मेरे अहबाब घटते जाते हैं,
आज इसकी कल किसी की रुख़सती होने लगी।

वो सुदामा अब कहां है और वो कृशना कहां,
अब इसी धरती पे नक़ली दोस्ती होने लगी ।

मेरे इस उजड़े मकां में एक जुगनू था फ़क़त,
इसके जाने से भी कितनी तीरगी होने लगी।

जब अमीरों के मकां पर मुझको जाना पड़ गया,
और भी ग़मनाक मेरी मुफ़लिसी होने लगी।

जाम से और भीड़ से गाड़ी में दम घुटने लगा,
जब थके हारे की घर को‌ वापसी होने लगी।
— अरुण शर्मा साहिबाबादी

अरुण शर्मा साहिबाबादी

नाम-अरुण कुमार शर्मा क़लमी नाम-अरुण शर्मा साहिबाबादी पिता -जगदीश दत्त शर्मा शिक्षा-एम ए उर्दू ,मुअल्लिम उर्दू ,बीटीसी उर्दू। जीविका उपार्जन- सरकारी शिक्षक पता-एफ़ 73, पहली मंज़िल,पटेल नगर-3, ग़ाज़ियाबाद। मोबाइल-9311281968 पुस्तकें-खोली, झुग्गी,पुल के नीचे एक पत्ती अभी हरी सी है, मुनफ़रिद,इजतिहाद.मुफ़ीक़ ( सभी कविता संग्रह) पुरुस्कार-उर्दूकी कई संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत। कई सम्मान समारोह आयोजित हुए हैं।

Leave a Reply