ग़ज़ल
ज़िंदगी की राह में कुछ इस तरह खो गए,
जैसे धूप में साये कहीं पीछे रह गए।
हर मुस्कान के पीछे छुपा था एक ग़म,
हम भी हँसते रहे और आंसू बहा गए।
कभी तन्हाइयों ने भी अपना लिया हमें,
दोस्तों की भीड़ में भी हम तन्हा रह गए।
इश्क़ की किताब में लिखे थे कुछ फ़साने,
वो पन्ने पलटते-पलटते ख्वाब सारे जल गए।
अब ना शिकवा है, ना कोई शिकायत रही,
जो अपने थे, वक्त के साथ पराए बन गए।
अगर चाहो तो बताऊँ दिल का हाल तुझे,
वरना सब ठीक है, ये झूठ भी कह गए।
— हेमंत सिंह कुशवाह