ग़ज़ल
सोच के साथ जब अमल आया।
खुद ब खुद रास्ता निकल आया।
सूर्य उल्फ़त काजबनिकल आया।
मोम सा आदमी पिघल आया।
काम बिगड़े सभी बने पल में,
जब इरादा ज़रा अटल आया।
वेश भूषा की बात कह कर वो,
अपना चेहरा तलक बदल आया।
साथ उसके हमीद भीड़ चली,
आदमी जब कोई सफल आया।
— हमीद कानपुरी