कविता
वो मुझ से दूर है
ये मन कहता है
दिल कहता है, यहीं
कहीं आस-पास है
हवा का झोंका जब-जब
मेरे समीप आता है
एक पहचानी ख़ुशबू
मुझे तरबतर कर जाती है
चादर पर पड़ी सिलवटों से
लगता है किसी की रूह
हमारे साथ रही होगी
और तब सुबह की सुहावनी
किरणों का दिल खोल कर
स्वागत करती हूँ
सारे पुष्प खिलखिलाते नज़र
आते हैं, जिन्हें स्पर्श कर
आह्लदित होती हूँ, जैसे
तुम भी कहीं मेरे आस-पास हो
ये जानते हुए कि वो इतनी दूर
चला गया है, जहाँ से लौट आना
सदा के लिए नामुमकिन है
किन्तु, उसके होने का आभास
या कल्पना मात्र मेरे जीने का
सहारा बन जाता है।
— मंजु लता