कविता

कविता

वो मुझ से दूर है
ये मन कहता है
दिल कहता है, यहीं
कहीं आस-पास है
हवा का झोंका जब-जब
मेरे समीप आता है
एक पहचानी ख़ुशबू
मुझे तरबतर कर जाती है
चादर पर पड़ी सिलवटों से
लगता है किसी की रूह
हमारे साथ रही होगी
और तब सुबह की सुहावनी
किरणों का दिल खोल कर
स्वागत करती हूँ
सारे पुष्प खिलखिलाते नज़र
आते हैं, जिन्हें स्पर्श कर
आह्लदित होती हूँ, जैसे
तुम भी कहीं मेरे आस-पास हो
ये जानते हुए कि वो इतनी दूर
चला गया है, जहाँ से लौट आना
सदा के लिए नामुमकिन है
किन्तु, उसके होने का आभास
या कल्पना मात्र मेरे जीने का
सहारा बन जाता है।

— मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।

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