ग़ज़ल
टूटने पर क़हक़हे को सौ जने
एक दिल है तोड़ने को सौ जने
हो गए समझा-बुझाकर बाँवरे
इस हमारे बाँवरे को सौ जने
पाठशाला ये चलेगी प्यार की
आ गए हैं दाख़िले को सौ जने
बेतरह सूनी जगह खोला गया
मिल गए हैं मयक़दे को सौ जने
जो तुम्हारे गाँव-कूचे को गया
पूछते हैं रास्ते को सौ जने
कारनामा एक दिखलाता नहीं
पर करिश्मा सोचने को सौ जने
एक तुझसे एक मुझसे क्या बने
चाहिए जब क़ाफ़िले को सौ जने
— केशव शरण