सामाजिक

छोटी सी मुस्कान, उम्मीद की किरण।

रहमदिली का कोई भी अमल, चाहे वो कितना भी छोटा क्यों ना हो, कभी बेकार नहीं जाता। इस जुमले के  मायने और अहमियत बहुत गहरी है। इसका मतलब ये है कि जब भी हम किसी के साथ रहम, हमदर्दी या मदद का सुलूक करते हैं, चाहे वो बहुत छोटा सा अमल हो, जैसे किसी को मुस्कुरा कर देखना, किसी को रास्ता दिखा देना, या किसी ज़रूरतमंद की मामूली सी मदद करना, तो वो कभी ज़ाया नहीं जाता। उसका कोई ना कोई मुसबत असर ज़रूर होता है।
रहमदिली के छोटे-छोटे आमाल भी एक चेन रिएक्शन की तरह होते हैं। जैसे आप किसी की मदद करते हैं, वो शख़्स ख़ुश होता है और शायद आगे किसी और की मदद करता है। इस तरह रहमदिली का असर फैलता जाता है।
अगर आप किसी अजनबी को रास्ता पार करवाते हैं, तो वो शख़्स भी पूरा दिन ख़ुश रहता है और शायद किसी और की मदद कर देता है।
अक्सर छोटी-छोटी रहमदिल बातें किसी के दिन को बेहतर बना सकती हैं। ये शख़्स के एतमाद और ज़हनी हालत को भी मुसबत बना देती हैं। ये जज़्बाती मदद भी हो सकती है।
किसी उदास दोस्त को अच्छा पैग़ाम भेजना या उसे गले लगाना, ये छोटा सा अमल उसके लिए बहुत अहम हो सकता है।
जब लोग एक-दूसरे के लिए रहमदिल होते हैं, तो मुआशरे में एतमाद और तआवुन (सहयोग) की फिज़ा बढ़ती है। इससे मुआशरा मज़बूत और ख़ुशहाल बनता है।
रहमदिली का अमल करने से हमें खुद को भी अच्छा महसूस होता है। ये हमारी रूह को सकून और खुशी देता है।
रहमदिली का कोई भी अमल, चाहे वो कितना भी छोटा क्यों ना हो, कभी ज़ाया नहीं जाता, क्योंकि वो किसी ना किसी सूरत में, किसी ना किसी की ज़िंदगी में, मुसबत तबदीली ज़रूर लाता है। ये एक बीज की तरह है, जो वक्त के साथ फल देता है।

“एक छोटी सी मुस्कान भी किसी के लिए उम्मीद की किरण बन सकती है।”

— डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़, 

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

वालिद, अशफ़ाक़ अहमद शाह, नाम / हिन्दी - मुश्ताक़ अहमद शाह ENGLISH- Mushtaque Ahmad Shah उपनाम - सहज़ शिक्षा--- बी.कॉम,एम. कॉम , बी.एड. फार्मासिस्ट, होम्योपैथी एंड एलोपैथिक मेडिसिन आयुर्वेद रत्न, सी.सी. एच . जन्मतिथि- जून 24, जन्मभूमि - ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा , कर्मभूमि - हरदा व्यवसाय - फार्मासिस्ट Mobile - 9993901625 email- dr.m.a.shaholo2@gmail.com , उर्दू ,हिंदी ,और इंग्लिश, का भाषा ज्ञान , लेखन में विशेष रुचि , अध्ययन करते रहना, और अपनी आज्ञानता का आभाष करते रहना , शौक - गीत गज़ल सामयिक लेख लिखना, वालिद साहब ने भी कई गीत ग़ज़लें लिखी हैं, आंखे अदब तहज़ीब के माहौल में ही खुली, वालिद साहब से मुत्तासिर होकर ही ग़ज़लें लिखने का शौक पैदा हुआ जो आपके सामने है, स्थायी पता- , मगरधा , जिला - हरदा, राज्य - मध्य प्रदेश पिन 461335, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल मगरधा, पूर्व प्रधान पाठक उर्दू माध्यमिक शाला बलड़ी, ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी, कम्युनिटी हेल्थ वर्कर मगरधा, रचनाएँ निरंतर विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 30 वर्षों से प्रकाशित हो रही है, अब तक दो हज़ार 2000 से अधिक रचनाएँ कविताएँ, ग़ज़लें सामयिक लेख प्रकाशित, निरंतर द ग्राम टू डे प्रकाशन समूह,दी वूमंस एक्सप्रेस समाचार पत्र, एडुकेशनल समाचार पत्र पटना बिहार, संस्कार धनी समाचार पत्र जबलपुर, कोल फील्डमिरर पश्चिम बंगाल अनोख तीर समाचार पत्र हरदा मध्यप्रदेश, दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद नगर कथा साप्ताहिक इटारसी, में कई ग़ज़लें निरंतर प्रकाशित हो रही हैं, लेखक को दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार दैनिक जागरण ,मंथन समाचार पत्र बुरहानपुर, और कोरकू देशम सप्ताहिक टिमरनी में 30 वर्षों तक स्थायी कॉलम के लिए रचनाएँ लिखी हैं, आवर भी कई पत्र पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ पढ़ने को मिल सकती हैं, अभी तक कई साझा संग्रहों एवं 7 ई साझा पत्रिकाओं का प्रकाशन, हाल ही में जो साझा संग्रह raveena प्रकाशन से प्रकाशित हुए हैं, उनमें से,1. मधुमालती, 2. कोविड ,3.काव्य ज्योति,4,जहां न पहुँचे रवि,5.दोहा ज्योति,6. गुलसितां 7.21वीं सदी के 11 कवि,8 काव्य दर्पण 9.जहाँ न पहुँचे कवि,मधु शाला प्रकाशन से 10,उर्विल,11, स्वर्णाभ,12 ,अमल तास,13गुलमोहर,14,मेरी क़लम से,15,मेरी अनुभूति,16,मेरी अभिव्यक्ति,17, बेटियां,18,कोहिनूर,19. मेरी क़लम से, 20 कविता बोलती है,21, हिंदी हैं हम,22 क़लम का कमाल,23 शब्द मेरे,24 तिरंगा ऊंचा रहे हमारा,और जील इन फिक्स पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित सझा संग्रह1, अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा,2. तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी, दो ग़ज़ल संग्रह तुम भुलाये क्यों नहीं जाते, तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें, और नवीन ग़ज़ल संग्रह जो आपके हाथ में है तेरा इंतेज़ार आज भी है,हाल ही में 5 ग़ज़ल संग्रह रवीना प्रकाशन से प्रकाशन में आने वाले हैं, जल्द ही अगले संग्रह आपके हाथ में होंगे, दुआओं का खैर तलब,,,,,,,

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