ग़ज़ल
हाँ कहा तो मुकर तुम न जाना प्रिये।
साथ मेरे सुनो आज आना प्रिये।।
अब ज़माना हमें साथ देता नहीं।
तुम क़दम देख पीछे हटाना नहीं।।
छूट जाये न अब तो कभी साथ ही।
बेरुख़ी फिर सुनो तुम दिखाना नहीं।
सच कहूँ बात दिल की यही एक ही।
देखते हो गया मैं दिवाना प्रिये।।
याद रखना नहीं दूर जाना कभी।
दूर होकर मुझे मत सताना प्रिये।।
प्यार तुम तो करो अब सदा ही मुझे।
साथ मेरे सुनो मुस्कुराना प्रिये।।
हाथ में हाथ ले हम चलें संग ही।
रास्ता मंज़िलों का सुहाना प्रिये।।
हुस्न की वादियों में किये वायदे।
प्यार करना अगर तो निभाना प्रिये।।
हर अदा प्यार से ही भरी ही हुई।
ये हुनर अब मुझे तुम सिखाना प्रिये।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’