बुन लो शब्दों का ताना बाना
हाथ में कलम आने से
चालबाजों ने बुन डाले शब्दों का ताना बाना,
भेड़चाल की आदी दुनिया
हक़ीक़त क्या है बिल्कुल न जाना,
अपने किस्से कहानियों को
जोरशोर प्रचारित कर कह दिये पवित्र,
साथ दिये भविष्य में लाभ की लालसा वाले
सगे संबंधियों यार,दोस्त,मित्र,
इन चालबाजियों से
अछूता नहीं रहा कोई भी देश,
सबने गढ़े किताब देख स्थिति और परिवेश,
इन कथाओं से डरने लगे धीरे धीरे भीरू,
अपने व परिवार की खुशी खातिर
मांगने लगे लोग दुआएं,
होने लगी आरती,जलने लगे धूपबत्ती
टालने अदृश्य से आ सकने वाली बलाएं,
इस तरह से शुरू हुआ डर का व्यापार,
जो जारी है सतत,अनवरत धुंआधार,
दरअसल यह कलम की ताकत का
एक उदाहरण है जो
हो सकता था बहुत ही बेहतरीन,
जिस पर करती सारी जनता यकीन,
खैर शब्द कलम से निकलती रहेगी
और लोग बुनते रहेंगे शब्दों के ताने बाने,
बनकर औरों से सयाने।
— राजेन्द्र लाहिरी