साहित्य जीवन का यथार्थ है
‘साहित्य’ जीवन का एक यथार्थ है,
हर सांस में रचा बसा निहितार्थ है।
कन्नड़ लेखिका बानू के ‘हॉर्ट लैम्प’,
बुकर पुरस्कार से मारा हैं अब जंप।
भारत की भाषायी साहित्य के लिए,
ये गर्व और गौरव ने प्रज्वलित किए।
‘साहित्य’ जीवन का एक यथार्थ है,
हर सांस में रचा बसा निहितार्थ है।
इससे यह भी साबित होता रहा है,
लेखन धर्म व भाषा में बंधा नहीं है।
सर्वहारा वर्ग की पीड़ा एक जैसी हैं,
न पूछो जाति या धर्म कुछ वैसी हैं।
‘साहित्य’ जीवन का एक यथार्थ है,
हर सांस में रचा बसा निहितार्थ है।
भारतीय भाषा के लिए जीवनी है,
ये बुकर पुरस्कार एक संजीवनी है,
भाषा और साहित्य सीमा से दूर है,
सभ्य समाज के लिए संदेश सुदूर हैं।
(संदर्भ : बानू मुश्ताक के ‘हॉर्ट लैम्प’ को बुकर पुरस्कार प्राप्त होने पर)
— संजय एम तराणेकर