दोहे
बनती बहुत मजबूरियां, बना तमाशा देत।
आज कल शादी प्रथा, करती मटियामेट।।
जाना तो माना नहीं, कर खर्चीला विवाह।
जीना दूभर ख़ुद किया, बनता लापरवाह।।
विवाह तो धंधा बना, होता खर्च फिजूल।
करने वाला लुट रहा, लगता ऊल जलूल।।
करते ही कंगाल हुआ, अगला मालामाल।
कैसे नवल विकास हो, जब घर है बेहाल।।
गलती जिनसे भी हुई, उसे नहीं दोहराएं।
नई पीढ़ी में सुचिता,राह दिखाकर जाएं।।
देखा देखी मत करें, होती जिनसे हान।
धन वैभव के बिगड़ते,घट जाती पहचान।।
सामूहिक विवाह करें, यह मानो वरदान।
बिना झिझक फेरे पड़ें, हर्षित कन्यादान।।
— हेमंत सिंह कुशवाह