इंतज़ार
नींद करती रही इंतजार रात भर,
हम भी करते रहे हैं श्रृंगार रात भर।
ख़्वाब में जाने किसकी थी बेसुध तलाश,
किसको ढूँढा किये बार बार रात भर।
चांद ही तो है बस गवाह एक मेरा
करते रहते हैं उसका दीदार रात भर।
धूप ने सुबह आकर जो पूछा हमे,
मन रहा इतना क्यों बेकरार रातभर।
शख्स था वो या जैसे नशा था कोई,
हमपे चढ़ता रहा है खुमार रात भर।
— सविता सिंह मीरा