गीतिका/ग़ज़ल

इंतज़ार

नींद करती रही इंतजार रात भर,
हम भी करते रहे हैं श्रृंगार रात भर।

ख़्वाब में जाने किसकी थी बेसुध तलाश,
किसको ढूँढा किये बार बार रात भर।

चांद ही तो है बस गवाह एक मेरा
करते रहते हैं उसका दीदार रात भर।

धूप ने सुबह आकर जो पूछा हमे,
मन रहा इतना क्यों बेकरार रातभर।

शख्स था वो या जैसे नशा था कोई,
हमपे चढ़ता रहा है खुमार रात भर।

— सविता सिंह मीरा

*सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com

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