मुक्तक
टूट कर चाहा जिसे वो तोड़कर दिल जा रहा |
आरजू जिसकी थी वो ही न हमें मिल पा रहा |
बाग में यूं तो हजारो फूल हैं हर रंग के |
पग शहीदो के चढ़ाते वो नहीं खिल पा रहा ||
— शालिनी शर्मा
टूट कर चाहा जिसे वो तोड़कर दिल जा रहा |
आरजू जिसकी थी वो ही न हमें मिल पा रहा |
बाग में यूं तो हजारो फूल हैं हर रंग के |
पग शहीदो के चढ़ाते वो नहीं खिल पा रहा ||
— शालिनी शर्मा