कहानी

सुख

दरवाजे की घंटी बज रही थी, भगवती प्रसाद को बुखार कीदरवाजे की घंटी बज रही थी, भगवती प्रसाद तपिश से उठने का मन नहीं हो रहा था पर घंटी दूसरी बार बज उठी तो अलसाते हुए उठकर दरवाजा खोलने चल दिए ।
दरवाजा खोलते ही भगवती प्रसाद सामने खड़े व्यक्ति को देख कर चौंक पड़े। अरे साहब आप! नमस्कार नमस्कार कैसे है आप, आइये, आइये अन्दर आइये। कैसे आना हुआ साहब, मुझे बुला लेते। अपने बैंक के सबसे बड़े अधिकारी को घर के दरवाजे पर खड़ा देख कर भगवती प्रसाद हर्ष व आश्चर्य से झूम उठे, बुखार जाता रहा।
             आलोक बाबू खुद को कभी अपने मातहत रहे बैंक कर्मी भगवती प्रसाद के खुद को खड़ा पाकर सकपका गये।सांप छछूंदर जैसी स्थिति हो गई न निगलते बन रहा रहा था न उगलते। खुद को सम्भालते हुए चहरे पर बनावटी खुशी लाते हुए बोले___नमस्कार भाई नमस्कार,ये तुम्हारा घर है । चलो अच्छा हुआ बाहर टू लैट का बोर्ड देखकर आया हूं। झेंपते हुए बिना भूमिका केअपने आने का कारण बता दिया आलोक बाबू ने ।
अरे अरे आप ही का ही घर है। अंदर आइए। घर ठीक ठाक ही था। कमरे में सादा सा सोफ़ा, साधारण सजावट, घर की शांति मन को सुकून से भर गयी। आलोक बाबू सोफे पर बैठ गए।
पीने का पानी लेकर आये भगवती प्रसाद ने ट्रेन आलोक बाबू के सामने करते हुए कहा __पानी लीजिए । आपके तो खुद का मकान तभी बन गया था जब आप यहां की ब्रांच में थे । फिर किराए का मकान ,कुछ समझ नहीं आया, किसी रिश्तेदार के लिए कमरा ढूंढ रहे हैं क्या? भगवती प्रसाद का विस्मय बढ़ता ही जा रहा था।
अरे अब कहां से बताना शुरू करूं, आलोक बाबू की आंखें भरी भरी सी हो गई । बड़ी मुश्किल से खुद को सम्भालते हुए बोले__कमरा खुद के लिए ही देख रहा हूं, अकेला हूं एक साल हुए पत्नी भी नहीं रही, पूरी तरह अकेला हूं।एक गहरी सांस ली आलोक बाबू ने। भगवती प्रसाद का मुंह खुल का खुला रह गया।
मन में विस्मय व संशय के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे।मैं कुछ समझा नहीं ___भगवती प्रसाद लगभग हकलाते हुए बोल पड़े। आलोक बाबू ने एक बार सामने टंगी घड़ी की तरफ देखा , दिन के बारह बज रहे थे। बड़ी गहरी सांस लेते हुए लगभग रुंधे हुए गले से भरभराते हुए बोले__वो दिन मेरी दुनिया के सबसे अच्छे दिन थे,जब तुम और मैं यहीं के बैंक में थे। पत्नी दो बच्चे, एक बेटा और एक बेटी,ये ही मेरी दुनिया थी पर आगे बढ़ने और अधिकारी बनने के जुनून में मैं परीक्षाएं देता रहा और आगे बढ़ता रहा, पिछले साल “एम डी “की पोस्ट से रिटायर हुआ हूं।
आलोक बाबू भगवती प्रसाद की तरफ देखा कर बोले।
          लो तुम्हारी सुनाओ , मेरी कहानी तो सुन ही ली है । आलोक बाबू बोले।
मेरी क्या सुनाऊं __यही बैंक में चपरासी लगा था फिर इसी बैंक से बाबू बनकर रिटायर हो गया साहब , एक बेटा और दो बेटियां हैं,सबकी शादी हो गई। बेटियां यहां पास के गांवो में रहतीं हैं,जब समय मिलता है आ जातीं हैं।बेटे ने प्राईवेट
नौकरी कर रखी है ।
पिछले साल ही बेटे की शादी करके सब जिम्मेदारियों से मुक्त हो गया हूं।अब घर में बेटा बहू और पत्नी है।आराम से गुजरा हो जाता है।अपना तो शुरू से यही है जितनी चादर हो उतने ही पैर पसार लो । यही छोटी-सी दुनिया है मेरी, बहूं भी सिलाई करती है । थोड़ा थोड़ा हम सब कमा कर काम चला लेते हैं।चल रही है जिन्दगी। भगवती प्रसाद ने मुस्कुराते हुए कहा। आलोक बाबू को भगवती प्रसाद खुशियों के झूले पर झूलते नजर आए।
        आलोक बाबू खुद के बारे में और कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे । इसलिए बात को बताने की स्थिति में नहीं थे, इस लिए बात को बदलने की गरज से बोले __लो चलो मुझे कमरा तो दिखा दो । भगवती प्रसाद बोले__साहब कमरे में आपके हिसाब की सुविधा नहीं हो सकती है।
अब ज्यादा सुविधा नहीं चाहिए।सब कुछ साधारण होगा
तो भी चल जायेगा।ये कहकर आलोक बाबू कमरा देखने के लिए खड़े हो गए ।कमरा साधारण सा था पर आलोक बाबू यही रहने का मन बना रहे थे।
कमरा मुझे सही लग रहा है आप मुझे कमरा किराए पर दे दोगे जो किराया बने ,ले लेना __आलोक बाबू बोले । अरे अरे सर आपसे क्या किराया लेना।आप हमारे यहां रहना चाह रहे हैं यही बहुत है।
सुनो चाय बना गयी है ,आओ भगवती प्रसाद की पत्नी ने भीतर से आवाज दी।चाय नाश्ता आलोक बाबू की तरफ बढ़ाते हुए भगवती प्रसाद बोले __साहब आपके बेटा बहू कहां है ? भाभी जी के क्या हुआ, कुछ समझ नहीं आ रहा है।
क्या बताऊं __तीन साल पहले तक मैं दुनिया का सबसे अमीर और सुखी आदमी था । बेटी की शादी हो गई है दामाद बैंक में आफिसर है, आराम से रह रही है । बेटा आइ आइ टी करके अमेरिका में बस गया । दो साल पहले उसकी भी शादी कर दी ।बहू भी इंजीनियर मिल गयी
       दोनों अमेरिका के हो गये ।बेटे का दो तीन करोड़ का पैकेज होगा और बहु का भी एक करोड़ पैकेज होगा शायद। पैसे की कोई कमी नहीं है।
  क्या बताऊं ,आज लगता है, सबसे गरीब आदमी हूं मैं ___आलोक बाबू रुहासे से होते हुए बोले। पिछले साल पोती भी हो गयी। पोती हुई तब मैं और पत्नी दोनों बहु और पोती के लिए वहां रहने गये। पोती और बहु की देखभाल का मोह हमको अमेरिका तक ले गया।हम दोनों ने अमेरिका में वो सब काम किए,जिनको यहां नौकरों से करवाते हैं, मैं और मेरी पत्नी ने सुबह शाम बर्तन मांजे पोती को रखना,उसका दूध बनाना,नैपी बदलना, मशीन में कपड़े मैंने खुद धोये है । बोलते बोलते आलोक बाबू की आंखें की किनोर से आंसूओं का रेला बह चला।
          अरे साहब,मन छोटा मत करो, सब समय का फेर है।आपका तो खुद का मकान है उसमें क्या हुआ, भगवती प्रसाद बोले। मकान तो मेरे खुद के तीन है । एक बेटी को दे दिया , एक मकान बेटा बहू के नाम कर दिया था। अमेरिका में जब हम रहे तो बेटा बहू के व्यवहार से पत्नी बहुत आहत हुई और दुखी रहने लगी ,उसे लगा बहु ने हमें केवल नौकर की जगह समझा, यही दुख उसे ले गया । पिछले साल अचानक पत्नी की तबीयत खराब हुई, अस्पताल भी पहुंच गये, इलाज भी चालू कर दिया पर फिर भी नहीं बच पाई और मेरी दुनिया उजड़ गई।
         अब अकेले खुद के मकान में रहने का मन नहीं करता है , इस लिए किराए का मकान देख रहा हूं, जहां इंसानों के साथ रह सकूंगा । बेटा बहू के पास जा नहीं सकता।बेटी के पास जाना नहीं चाहता हूं, संस्कार रोकते हैं। आलोक बाबू धारा प्रवाह बोल रहे थे। बहुत दिनों से जो दिल में उमड़ घुमड़ रहा था,भरे बादलों सा  बरस पड़ा।
                      आलोक बाबू की नजर घड़ी पर चलीं गईं।देखा बातों ही बातों में चार बज गये। वापस चाय का समय हो चला है। भगवती प्रसाद असमंजस में सोच रहे हैं कि अब क्या किया जाए। भगवती प्रसाद कुछ कह पाते आलोक बाबू बोले ___आज तो मेरी कहानी सुनाने में ही शाम हो गयी ।अब कमरा किराए पर लेना ही है तो आपके यहां ही ले लेता हूं आप को कोई दिक्कत तो नहीं है आपकी कोई खास शर्त हो तो बता दो, खाना मैं खुद बनाता नहीं हूं , टिफिन मंगवाता हूं। एक इन्डैक्शन का चूल्हा रख रखा है,चाय दूध घर पर बना लेता हूं बाकी साफ सफाई के लिए एक बाई  है जो पत्नी के समय से ही आ रही है। ऐसे गुजारा चल रहा है।चाय आ गयी ,चाय आलोक बाबू की ओर बढ़ा दी । भगवती प्रसाद आलोक बाबू की दयनीय स्थिति को देखकर पुरानी यादों में खो गये । कितने दबंग और अनुशासित और अपने काम में निपूर्ण थे और आज किस हाल में आ गया है।
           चाय पीते भगवती प्रसाद ने आलोक बाबू से कहा __आपका ही घर है ।जब आकर रहना चाहे ,तब से  ही आ जाईए। आलोक बाबू ___हां,पांच सौ रुपए रख लो , फिर हिसाब कर लेंगे। अरे इसकी क्या जल्दी है, पैसे तो बाद में ही दे देते ____भगवती प्रसाद धीमें स्वर में बोलें।
                      आलोक बाबू को विदा करके धम्म से पलंग पर बैठ गए उनका सिर चकरा रहा था समझ में नहीं आ रहा था कि आलोक बाबू की पोस्ट और तनख्वाह देख कर तो खुशी की बात है पर पारिवारिक स्थिति सुन कर दुख हो रहा है।
      इतने में पत्नी कमरे में आ गयी । भगवती प्रसाद जी की हालत देख कर कहने लगी ___इनकी बातें सुनकर तो मेरा जी घबराने लगा है । इनको किराये पर रख लेंगे तो तुम तो सारे दिन साहब में ही लगे रहोगे,तो घर के काम हो लिए,कहां तुम क्लर्क की नौकरी करने वाले । फिर परिवार  पास है नहीं , कभी बिमार _सिमार पड़ गये तो कौन करेगा। मेरी मानो तो इस झंझट में मत पड़ो।
          न जाने क्यों आलोक बाबू की स्थिति पर भगवती प्रसाद को बड़ी दया आ रही है वो बोले__अरे, अरे क्या कह रही हो। इनको इस हाल में छोड़ देना तो गलत है । वैसे भी अब समाज सेवा करने की उम्र है।हम धन से न सही,तन और मन से तो किसी के काम आ जाए तो क्या बुरा है ।
        भगवती प्रसाद बोले __इस दुनिया में कोई अपना पराया नहीं है। जिसे अपना मान लो वो ही अपना है । भगवती प्रसाद फिर बोले_इतने बड़े आदमी के परिवार रहा नहीं है , तभी तो परिवार का माहौल मिल सके इसके लिए तो अपने यहां किराये पर रहने आ रहे है। अपने बेटा बहू में खुद के बेटा बहू देख रहे हैं।इनका बचा हुआ समय कटवा दे ।आज किसी का समय कटवाना भी सेवा ही है ।मैं तो सोच रहा हूं वो घर का” खाना “खाना चाहे तो उनके खाने की व्यवस्था भी घर में ही कर देंगे,अपना क्या जायेगा, एक जान के कितना चाहिए।
        पत्नी बोली ___इस उमर में ये दुख भी भगवान किसी को न दें ,सब कुछ होते हुए भी “रीते”रख दिया। भगवती प्रसाद पत्नी से बोले ___तुम देखो ,हे भगवान हम दोनों कितने सुखी है ।आज जिसकी औलाद उसके साथ है,वो ही धनी है।हम दुनिया के धनी आदमियों में से है। तुम सोचो तुम्हारे सामने तुम्हारे पोता है ,जिसको सारे दिन हमें रखना  है।आज हमें कुछ जाये तो हमारा बेटा बहू साथ चलने के लिए तैयार रहेगे।
हम भगवान के भरोसे नहीं अपने बच्चों के भरोसे है, यही सबसे सुख की बात है।लो चलो , आज नवरात्रि का पहला दिन है।हम भी माता जी के दर्शन करके आये,उनको धन्यवाद देकर आये।        

— शुभ्रा राजीव

शुभ्रा राजीव

मूल नाम शुभ्रा भार्गव निवासी। भीलवाड़ा राजस्थान शिक्षा। बी एस सी ,बी एड एम ए हिन्दी कार्यरत। वरिष्ठ अध्यापिका गणित शिक्षा विभाग राजस्थान रुचि लिखना पढ़ना

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