कविताई पागलपन है
एक पड़ोसी ने मुझसे कहा
सुना है-
कवियों में आपका है नाम
मतलब पागलपन है आपकी पहचान
हैं आप अति संवेदनशील
देखकर दुनिया की हालत
हो जाते हैं चिंतनशील
आपसे रहना होगा बचकर
आपके पास है शब्दों का नश्तर
आपकी माली हालत है नहीं बताने लायक
आप नहीं हैं उधारी के भी लायक
अपनी कविता छपवाने के लिए
खुद ही करते हैं भुगतान
और
संपादकों को दिन-रात दुआ सलाम
किस्मत रही यदि बहुत मेहरबान
तो बुढ़ौती में पाइएगा कागजी ईनाम
क्या होगा भला ऐसे प्रोफेशन से ?
जो भर न सके पेट दो वक्त की रोटी से
मैंने कहा-
कविताई नहीं है कोई प्रोफेशन
यह तो है एक पैसन
वैसे तो हर इंसान के अंदर
बसता है कविता
बस वह संवेदनशील दिखने से है बचता
फ़र्क इतना है कि
लोगों ने अपनी अंतरात्मा की आवाज को
सुनना कर दिया है बंद
वहीं बाकी है मुझमें अभी
थोड़ी-बहुत संवेदनशीलता का अंश
कविताई का नहीं लगा सकता है कोई मोल
यह तो बस होता है अनमोल
सच तो यह है कि
झकझोरती हैं कविताएं लोगों को
दिखाती हैं आईना सबको
चूंकि डरता है आप जैसे लोगों का अंतर्मन
इसलिए
संवेदनशीलता और कविताई को
कहते हैं आप पागलपन ।
— मृत्युंजय कुमार मनोज