फिर संवाद करें
आओ फिर से बात करें हम, बातों से कुछ हल निकलेगा
मन की उलझन भी कम होगी, अहम् का हिम पर्वत पिघलेगा
आँख घृणा की भी नम होगी
फिर सोचें समझें क्यों कर दिन को रात करें हम।
हाथ से ये रिश्ते ना छूटें, प्यार भरें हम इनमें दूना
सूखे पत्तों से ना टूटें, होले से तुम इनको छूना
सबको आदर दें मन को थोड़ा ‘शान्त’ करें हम।
रत्ती भर न डरें, ना आघात या घाव करें हम
फिर संवाद करें आओ फिर से बात करें हम
.. देवकी नन्दन ‘शान्त’