उम्मीद क्यों शत्रु से
न कर दोस्त अपने दुश्मन से
उम्मीद अपनी भलाई का,
वो कुछ किया भी तो करेगा
प्रबंध आपकी रुलाई का,
क्यों भूल जा रहे हो कि दुश्मन
जरूरत से ज्यादा चतुर व चालाक है,
उनके हर चाल से हमेशा
हमारे लोग होते रहे हलाक है,
तुम्हारे हक अधिकार की आवाज
वो क्यों उठाएगा,
खुद का कमाई तुझे थोड़े ही खिलायेगा,
अब तो सोच तुम्हारे एक आवाज से
कौन कौन कहां कहां से आ सकता है,
बुलाना होगा हर एक अदने से लेकर पहाड़ को
जो शीघ्रता शीघ्र मैदान में आ सकता है,
बिना मैदान की लड़ाई के
वो हमेशा अपने आप को विजेता मानता है,
इसीलिए तो हर हमेशा
वो हमारे लिए भृकुटि तानता है।
— राजेन्द्र लाहिरी