ख़ुद को बेहतरीन साबित करने की प्रवृत्ति
आज की मुकाबला-आम दुनिया में हर शख़्स आगे बढ़ना चाहता है। ये फितरी भी है, लेकिन जब ये जज़्बा इतना तेज़ हो जाता है कि हम दूसरों के एहसासात, ज़रूरतों और उनके किरदार को नजरअंदाज करने लगते हैं, तो ये दुरुस्त नहीं। इससे समाज में आपसी तआवुन, एहतराम और हम-आहंगी की फिज़ा कम हो जाती है।
जब हम सिर्फ़ अपने बारे में सोचते हैं, तो हमारे ताल्लुक़ात में दरार आ सकती है। हर काम में टीम वर्क ज़रूरी है। दूसरों को नजरअंदाज करने से टीम की यकजहती और कारगुज़ारी पर असर पड़ता है।
ऐसी रविश से काम की जगह या समाज में मनफ़ी फिज़ा पैदा होती है। हमें दूसरों के ख़यालात और किरदार का एहतराम करना चाहिए। मुकाबला हो, लेकिन सेहतमंद और मुसबत हो। दूसरों की बातों को ग़ौर से सुनना और समझना चाहिए।
जब हम मिलकर आगे बढ़ते हैं, तो कामयाबी भी ज़्यादा लुत्फ़अंदोज़ होती है।
बेहतरीन बनने की ख्वाहिश अच्छी है, लेकिन दूसरों को नजरअंदाज करना दुरुस्त नहीं। हमें अपने साथ-साथ दूसरों की भी कद्र करनी चाहिए, तभी समाज में असली तरक्की और खुशहाली मुमकिन है।
“कामयाब वही है, जो अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे बढ़ने का मौका दे!”
दूसरों के लिए एहतराम बढ़ाने के लिए अपने रवैये में तब्दीली लाने के चंद अमली तरीके।
हमेशा दूसरों से इनक्सारी और रहमदिल्ली से पेश आएं। आपकी इनक्सारी ही आपको एहतराम दिलाएगी।
जब कोई बात करे, ग़ौर से सुनें। इससे सामने वाले को अहमियत और एहतराम मिलता है।
दूसरों को अपना समझकर, उनके भले का ख्याल रखते हुए बे-लौस रवैया अपनाएं।
सलाम और अदब भी ज़रूरी है—बड़ों को सलाम करें, छोटों को मोहब्बत दें, और सब से तहज़ीब से पेश आएं।
बार-बार गुस्सा करने से लोग आपसे दूर हो सकते हैं, इसलिए पुर-सुकून और मुसबत रहें।
ज़रूरतमंदों की मदद करना आपके लिए एहतराम बढ़ाता है।
ख़ुद्दारी का ख़ास ख्याल रखें, ख़ुद का एहतराम करें, तभी आप दूसरों का भी एहतराम कर सकेंगे।
इन आदतों को अपनाकर आप अपने रवैये में मुसबत तब्दीली ला सकते हैं और दूसरों के लिए एहतराम बढ़ा सकते हैं।एहतराम (Self-Respect) क्या है?
एहतराम यानी—ख़ुद के लिए वो एहसास, जिसमें आप अपनी सलाहियत, सोच और वजूद को अहमियत देते हैं। ये बाहर से मिलने वाली इज़्ज़त से अलग है; ये आपके अपने अंदर से पैदा होती है।
आपका एहतराम आपके हाथ में क्यों है?
आपका रवैया, आप दूसरों के साथ जैसा सलूक करते हैं, वैसा ही सलूक वो आपके साथ करते हैं।
अगर आप ख़ुद को कम समझेंगे, तो लोग भी आपको कम समझेंगे।
अपनी हदें (Boundaries) ख़ुद तय करें। किसी को भी अपने एहतराम को ठेस पहुँचाने की इजाज़त न दें।
जब ज़रूरी हो, बे-झिझक ‘ना’ कहना सीखें। इससे लोग आपकी तरजीहात और एहतराम को समझेंगे।
अपनी खूबियों और कमज़ोरियों को कबूल करें। जब आप ख़ुद को अपनाते हैं, तो दूसरों की राय आपके एहतराम को मुतास्सिर नहीं कर पाती।
अपनी छोटी-बड़ी कामयाबियों को पहचानें और ख़ुद को शाबाशी दें। इससे एतमाद और एहतराम दोनों बढ़ते हैं।
दूसरों की बातों से कभी न डरें और न आहत होंलोग क्या कहेंगे, इस डर से अपने असूलों से समझौता न करें। अपनी सच्चाई और ईमानदारी को तरजीह दें।
हर इंसान गलतियां करता है। अपनी गलतियों को कबूल करें, उनसे सीखें, मगर ख़ुद को कमतर न समझें।
एहतराम बाहर से नहीं, अंदर से आता है। अगर आप ख़ुद को इज़्ज़त देंगे, तो दुनिया भी आपको इज़्ज़त देगी।
आपका एहतराम आपके ख़यालात, फैसलों, रवैये और एतमाद में छुपा है।”दूसरे आपको तभी इज़्ज़त देंगे, जब आप ख़ुद अपनी इज़्ज़त करेंगे।”
— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह