परिवार
“आज भी किसी को मेरी याद नहीं आयी” प्रतिदिन की तरह सरिता बड़बड़ाती जा रही थी, “वृद्धाश्रम के इस कमरे में तुम कैसे खुश रह लेती हो? अपने घर और बच्चों की याद नहीं आती?”
“याद आती है। बच्चे अपनी दुनिया में खुश हैं, यह सोचकर मैं शांति से यहाँ रह रही हूँ,” मीना ने कहा।
“तेरे बच्चे तुझे फोन तो करते ही होंगे?”
“हाँ, कभी-कभी और तेरे,” मीना के इतने पूछने की देरी थी कि सरिता की आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी।” ” क्या बात है सरिता? रोज तो तू घरवालों पर गुस्सा करती है पर आज भावुक हो रही है। मुझे नहीं बतायेगी?”
“आज मेरा जन्मदिन है पर देख, एक फोन काॅल भी नहीं। मैं जीवित हूँ या नहीं किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता,” सुबकते हुए सरिता बोली।
“अच्छा रोना बन्द कर। तैयार हो जा। थोड़ी देर बाहर टहलते हैं। तुझे अच्छा लगेगा। दोनों कमरे से हाल में पहुँची। हाल सजा हुआ था। बीचो-बीच मेज पर मिठाइयाँ और शीतल पेय रखा था। सरिता को देखते ही सब वरिष्ठ सदस्यों ने जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी। साथ ही संगीत धुन बजने लगी – साथी हाथ बढ़ाना ….। सरिता को पहली बार अपने परिवार की पहचान हुई।
— डाॅ अनीता पंडा ‘अन्वी’