ग़ज़ल
अब चलो किसी की तस्वीर लगाई जाए।
ग़ैर की भी अब तक़दीर बनाई जाए।।
लक्ष्य साधे न सधे देखना हमको ही है।
अब बढ़ाने को ही तदबीर लड़ाई जाए।।
चल पड़े प्यार की राहों पर रहना चौकस।
हर क़दम चाल समझ कर समझाई जाए।।
सावधानी रखते वीर हैं सीमा पर।
गश्त फिर भी तो वहाँ पर लगाई जाए।।
जो जलन राख किसी देश को करती ही हो।
आग वह देख लगी आज बुझाई जाए।।
देख अड़चन हो रही खूब कठिन अब सुन लो।
राह से आज वही देख हटाई जाए।।
लाज़मी है अब ख़्यालों में समाना चाहो।
पर ज़रूरी है वफ़ा रोज़ निभाई जाए।।
देख तस्वीर यही शुभ न लगे अब हमको।
चाहता ये हूँ ये कमरे से हटाई जाए।
ज़िंदगी में है लिखा क्या इसका न पता है।
अब मुहब्बत सुन अपनी ही बनाई जाए।।
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’