मानवता की पीड़ा
अब आप इसे क्या कहेंगे?
बदलाव की बयार या समय की विडंबना।
आप कुछ भी कहने के लिए स्वतंत्र हैं
पर बड़ा प्रश्न मुँह बाये खड़ा है,
अंतर्द्वंद्व में उलझा पड़ा है,
अपने अस्तित्व पर हो रहे हमले के विरुद्ध
लड़ते हुए गिरते-पड़ते खड़ा है।
हमसे आपसे ही नहीं हर किसी से पूछ रहा है
पूछ क्या रहा है? बेचारा गिड़गिड़ा रहा है
अपने मान-सम्मान-स्वाभिमान की खातिर
हाथ जोड़ अनुरोध कर रहा है।
मैं मानवता, आपका बगलगीर हूँ
पूरी ईमानदारी से पूछता हूँ,
कि आज मुझ पर इतना अत्याचार क्यों हो रहा है?
हर कोई मुझसे अपना दामन क्यों छुड़ा रहा है?
बेवजह मुझे बदनाम क्यों किया जा रहा है?
बड़ी ढिठाई से मेरा दामन दागदार करने पर
कौन सा खजाना समेटा जा रहा है?
आखिर कोई तो बताए कि मेरा अपराध क्या है?
मुझसे भला किसको, कैसे, कितना नुक़सान हो रहा है?
मुझे पता है आप मुँह नहीं खोलेंगे
खोलेंगे तो सिर्फ़ जहर ही उगलेंगे
या फिर अपने स्वार्थ, सुविधा का लेप ही घोलेंगे,
इससे अधिक की उम्मीद भी नहीं मुझको
तुम हमको तौलोगे तो हम भी चुपचाप नहीं बैठेंगे?
तुम हम पर वार करोगे
तो क्या हम चुपचाप हमेशा ही सहते रहेंगे?
भ्रम में मत रहिए जऩाब- ऐसा बिल्कुल नहीं होगा,
अपने अस्तित्व को मैं कभी मिटने नहीं दूंगा,
चंद लोगों के सिर चढ़कर भी खूब बोलूँगा
अपने अस्तित्व की चमक को फिर भी जिंदा रखूँगा,
जो मुझसे खेलेगा, उसे पास भी नहीं आने दूँगा।
जो मेरा मान रखेगा, उसे शीर्ष पर पहुँचा दूँगा
उसके नाम का डंका दुनिया में बजवा दूँगा,
अपने नाम ‘मानवता’ का नया इतिहास लिखूँगा।