राजनीति

आयुष्मान भारत या असहाय भारत : निजी अस्पतालों में योजना की लूट और लाचारी

आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य गरीबों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण इलाज देना है, परंतु निजी अस्पतालों द्वारा इसे लूट का माध्यम बना दिया गया है। मरीजों से नकद धन माँगा जाता है, इलाज में लापरवाही बरती जाती है और दस्तावेज़ों की गड़बड़ी आम बात हो चुकी है। Servesh अस्पताल का एक उदाहरण इस भ्रष्ट तंत्र की सच्चाई को उजागर करता है। सरकार को सख़्त निगरानी, पारदर्शिता और जवाबदेही की व्यवस्था तत्काल लागू करनी चाहिए, अन्यथा यह योजना जनता का भरोसा खो बैठेगी।  

भारत सरकार द्वारा शुरू की गई ‘आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ को देश के सबसे बड़े सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के रूप में प्रचारित किया गया था। इसका उद्देश्य था कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं निःशुल्क मिलें और कोई भी व्यक्ति इलाज के अभाव में अपनी जान न गंवाए। परंतु जब यही योजना निजी अस्पतालों के लिए लाभ का साधन बन जाए और ज़रूरतमंद नागरिकों के लिए एक जाल, तब यह राष्ट्र के स्वास्थ्य की नहीं, बेबसी की तस्वीर बन जाती है।

इस योजना के अंतर्गत पात्र परिवारों को प्रति वर्ष पाँच लाख रुपये तक की निःशुल्क चिकित्सा सुविधा देने का दावा किया गया। सरकार ने सरकारी और निजी दोनों प्रकार के चिकित्सालयों को सूचीबद्ध किया, जिससे नागरिकों को सुविधाजनक सेवा मिल सके। लेकिन यही सूचीबद्धता बहुत से निजी अस्पतालों के लिए भ्रष्टाचार का दरवाज़ा बन गई।

हरियाणा के एक साधारण परिवार ने इस सच्चाई को तब जाना जब उनका एक बेटा अचानक बीमार पड़ा और उसे एक निजी अस्पताल—Servesh अस्पताल—में भर्ती कराने की ज़रूरत पड़ी। परिवार के पास आयुष्मान कार्ड था, जिससे उन्हें यह विश्वास था कि इलाज बिना पैसे के हो सकेगा। लेकिन अस्पताल ने पहले तो कार्ड को देखकर ही इलाज करने से मना कर दिया। जब कुछ जान-पहचान के माध्यम से प्रवेश संभव हुआ, तब अस्पताल प्रशासन ने बिना किसी पर्ची या बिल के दस हज़ार रुपये की माँग की। यह राशि सीधे नकद माँगी गई — बिना किसी औपचारिकता के।

यह मामला मात्र धन की माँग तक सीमित नहीं रहा। इलाज के दौरान वहाँ की चिकित्सा प्रणाली में घोर लापरवाही देखी गई। नर्सों का व्यवहार, चिकित्सकों की अनुपस्थिति, दस्तावेज़ों की गड़बड़ी और रोगी की फाइल का गायब होना — इन सबने स्थिति को और भयावह बना दिया। रोगी को एक दिन गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में रखा गया, लेकिन वहाँ की देखरेख और सुविधा नाममात्र की थी।

इस घटना से यह स्पष्ट हुआ कि आयुष्मान कार्ड केवल एक कागज़ी औज़ार बन चुका है। निजी अस्पताल इस योजना को केवल सरकार से पैसा वसूलने का माध्यम मानते हैं। वास्तविक सेवा की कोई गारंटी नहीं होती। अनेक अस्पतालों में देखा गया है कि या तो योजना के लाभार्थियों को प्रवेश ही नहीं दिया जाता, या फिर उनसे खुलेआम पैसे माँगे जाते हैं। अनेक बार यह भी देखा गया है कि आवश्यक परीक्षण और दवाएं जानबूझकर योजना के बाहर दिखाकर रोगी से अलग से धन वसूला जाता है। कई बार रोगी को इलाज ही नहीं मिलता, लेकिन सरकारी फाइलों में इलाज दिखाकर धन निकाल लिया जाता है।

इस योजना की निगरानी के लिए राज्य स्तर पर एक स्वास्थ्य एजेंसी बनायी गई है, परंतु व्यवहार में यह तंत्र लगभग निष्क्रिय दिखाई देता है। उपर्युक्त परिवार ने भी योजना की शिकायत हेल्पलाइन पर दर्ज कराई, लेकिन उन्हें कई सप्ताह तक कोई उत्तर नहीं मिला। अस्पताल प्रशासन से जब पूछताछ की गई तो जवाब की बजाय धमकियाँ और उपेक्षा मिलीं।

जब कोई सरकारी योजना इस हद तक भ्रष्टाचार की चपेट में आ जाती है, तो आम जनता के विश्वास का टूटना स्वाभाविक है। सरकार जिन जनकल्याणकारी योजनाओं का डंका पीटती है, ज़मीन पर वे ही योजनाएँ आम नागरिक के लिए अपमान, अपव्यवस्था और लाचारी का पर्याय बन जाती हैं। यदि पाँच लाख रुपये का बीमा होने के बावजूद किसी गरीब को दस हज़ार रुपये की नकद राशि देनी पड़े, तो यह न केवल योजना का मखौल है, बल्कि सीधे-सीधे एक सामाजिक अन्याय है।

समस्या केवल Servesh अस्पताल तक सीमित नहीं है। देश के अनेक राज्यों में हजारों ऐसे निजी चिकित्सालय हैं जो इसी प्रकार योजना का लाभ उठाकर जनता को ठग रहे हैं। यह एक प्रकार की संगठित धोखाधड़ी है, जिसमें अस्पताल, दलाल, और कभी-कभी सरकारी कर्मी भी शामिल होते हैं।

इस स्थिति से निपटने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:

सभी सूचीबद्ध निजी चिकित्सालयों की नियमित और सख़्त जाँच की जाए।

हर जिले में एक स्वतंत्र जन निगरानी समिति बनाई जाए जिसमें पत्रकार, अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हों।

जो चिकित्सालय योजना के नाम पर नकद धन माँगता पाया जाए, उसकी तत्काल सूची से नाम काटा जाए।

रोगी या उसके परिवार की स्वीकृति के बिना भुगतान की प्रक्रिया न हो।

एक प्रभावी और तत्काल प्रतिक्रिया देने वाला शिकायत निवारण मंच बनाया जाए।

जब तक यह व्यवस्था नहीं होगी, तब तक आयुष्मान भारत योजना का उद्देश्य अधूरा ही रहेगा। यह योजना गरीबों के लिए वरदान बनने की बजाय अब एक ऐसी व्यवस्था बनती जा रही है जहाँ न डॉक्टर ज़िम्मेदार हैं, न अस्पताल पारदर्शी। सब अपने हिस्से का लाभ लेने में लगे हैं — और बीच में पिसता है वह व्यक्ति जो केवल जीवन की आशा लेकर अस्पताल पहुँचा था।

आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं की आत्मा तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक उसकी रीढ़ पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और सेवा न हो। Servesh अस्पताल जैसे उदाहरण केवल व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की बीमार हकीकत हैं।

जब तक यह नहीं समझा जाएगा कि योजना का उद्देश्य केवल धन देना नहीं, बल्कि सम्मानजनक चिकित्सा सेवा देना है, तब तक देश का स्वास्थ्य तंत्र एक खोखली इमारत ही रहेगा — जहाँ इलाज से ज़्यादा प्रार्थना काम आती है, और डॉक्टर से ज़्यादा संबंध।

— डॉ. सत्यवान सौरभ

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: satywanverma333@gmail.com सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh

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