मेरे देश की पावन धरती
मेरे देश की पावन धरती तुझको सौ-सौ बार नमन
तुझ पर मैं बली-बलि जाऊँ,कर लूं नित-नित वंदन।
निश दिन तुम उपकार करती ये ऋण कैसे चुकाऊं
बस इतना मैं कर सकता हूँ,तुझ पर शीश झुकाऊं।
अपनी गोद सदा न्योछावर करती,ममता तू लुटाती
अपना पुत्र समझ के सबको,अपने हृदय से लगाती।
तू ममता की आँचल से,सब पर शीतलता बरसाती
शस्य श्याम्ला सुजला सुफला,सबको तू ही दे जाती।
तू धन्य है दयामयी है माँ,विराट स्वरूप माँ वरदानी
तू सब पे करुणा बरसाती कहलाती जन-कल्याणी।
तेरा भाल अचल हिमालय रहे,अखंड तेरा नाम रहे
चांद-सूर्य सा दैदिप्यमान अखिल विश्व गुरु धाम रहे।
तू धर्म गुरु तू विश्व गुरु तू ज्ञान-विज्ञान मे अग्रणी रहे
तू विश्व विजेता,अद्वितीय तेरा नाम अग्र पंक्ति मे रहे।
— अशोक पटेल “आशु”