कविता

विमान हादसे में दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि

आशाओं से पूर्ण विमान जब नीले गगन में उड़ चला,
किसे पता था नियति का प्रहार उस पल था पीछे खड़ा।
सपनों की वो रेखाएँ जो बादलों में थीं चित्र रच रहीं,
क्षण भर में टूट ध्वस्त हुईं, और निस्तब्ध रह गईं।

माँ की ममता, पिता की सीख, भाई-बहन का सच्चा प्यार,
सब रह गए अधूरा, जब हो गया आकाश पर प्रलय-प्रहार।
जिन आँखों में थे भविष्य के रंगीन सपने सँजोए,
अब उन्हीं आँखों को है पीड़ा के अश्रु से भिगोए।

बिखर गई वो हँसी, वो बातें, वो जीवन की मधुर कहानी,
सुनसान पटरियों पर रह गई केवल कुछ यादें पुरानी।
हादसे की भयंकर आग में झुलस गए सैकड़ों जीवन,
और छोड़ गए पीछे अपनों के लिए पीड़ा और क्रंदन।

ईश्वर! तुम तो दयालु हो, फिर क्यों ये कठोरता दिखाई?
क्यों वो मासूम आत्माएँ यूँ अचानक काल के गाल समाईं?
प्रार्थना यही है — उन्हें शांति मिले, नया आलोक मिल जाए,
जहाँ भी जन्म हों, बस प्रेम और स्नेह की रश्मियाँ लहराएँ।

जिनका घर टूटा, संसार उजड़ा, आँगन से उजास गया,
उनके जीवन में फिर से लौटे सुख, जो भी उनका गया।
हम सब उनके लिए विनम्र मौन श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं,
अपने भावों से दिव्य-दीप बनाकर शांति की लौ जलाते हैं।

हर उड़ान अब अभय हो, न हो फिर कोई ऐसा मंजर,
सावधानी, संवेदना व सतर्कता से हो सुरक्षित, सफल सफर।
जो गए हैं सब अपनों को छोड़कर, वो कभी भूले नहीं जाते,
उनके ख्याल हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रह जाते।

हर टुकड़ा उस मलबे का कहता है कोई कहानी,
हर चुप्पी में बह रही निरंतर दर्द की एक रवानी।
जो सपनों की गठरी लेकर जीवन के रथ पर चढ़े थे,
वे आज नियति के मौन भंवर में चिरनिद्रा में पड़े थे।

कुछ थे नवयुवक, कुछ वयोवृद्ध, कुछ मासूम नन्हें प्राण,
सबकी आंखों में थे पलने वाले अपने–अपने अरमान।
एक क्षण में जीवन पलटा, सांसों की ज्योत बुझ गई,
पीछे रह गए प्रश्न, और हकीकत आंसुओं में घुल गई।

कोई थी बेटी, जो उड़ान भरने निकली थी पहली बार,
कोई बेटा था, जो माँ के आँचल से दूर हो रहा था पहली बार ।
किसी की मांग का सिंदूर था उस सीट पर, अब राख है जहाँ,
किसी की उँगली पकड़ के चलता बच्चा अब जाएगा कहाँ?

कितना कुछ चुपचाप लील गया एक पल का वो प्रहार,
मानवता चेतना को कर गया तार-तार अनगिनत बार।
आकाश भी आज शांत नहीं, करता करुण आर्तनाद,
प्रकृति की व्याकुल पुकार बन गई हादसे का संवाद।

चलो अब हम सब मिलकर इस पीड़ा में संकल्प करें,
सुरक्षा, जागरूकता के साथ ही हर उड़ान का प्रकल्प करें।
न हो दोहराव कभी दुखद त्रासदी के ऐसे पल का,
हर उड़ान में विश्वास हो सुरक्षित एवं उज्ज्वल कल का।

दिवंगत आत्माओं को बस श्रद्धा से याद करते रहें हम,
और दुख में डूबे सब परिजनों का हाथ थामे रहें हम।
राष्ट्र की आत्मा रोती है जब कोई नागरिक यूँ जाता है,
हर संवेदनशील नागरिक उनका दुख अपना सा जताता है।

— डॉ. शैलेश शुक्ला

डॉ. शैलेश शुक्ला

राजभाषा अधिकारी एनएमडीसी [भारत सरकार का एक उपक्रम] प्रशासनिक कार्यालय, डीआईओएम, दोणीमलै टाउनशिप जिला बेल्लारी - 583118 मो.-8759411563

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