कविता

आस्था का इन्द्रधनुष

तेरे रंगों की महफ़िल में।
मैं खो के गुज़री हूं।।
ओझल तेरी आंखों से।
तेरे दिल में,मैं,उतरी हूं।।
आस्था की किरणों में ।
तेरी ओर मैं झुकती हूं ।।
तेरी सांझ कहीं और ढलती है ।
मैं भोर का इन्तजार करती हूं ।।
अश्कों में शबनम की बूंदें हैं ।
सरोवर समझकर रोक लेती हूं ।।
तेरी रोशनी का ये जो जाल है ।
इसे घरौंदा समझ लेती हूं।।
सतरंगी जो ये संकेत मिलते हैं।
प्रेम पथ सारथी समझ लेती हूं।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)

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