लघुकथा – प्रकाश
रश्मि खुद सूरज की खूबसूरत किरण थी, लेकिन एक तो रात के घुप्प अंधेरे में वह निस्तेज थी, दूसरे बारिश की बूंदें बरसने लगी थीं।
“मैडम मेरी छतरी के नीचे आ जाइए, ठंड के मौसम में भीगना महंगा पड़ सकता है।” पीछे से आते हुए एक सज्जन ने कहते हुए उसके ऊपर छतरी तान दी।
“मेरा नाम सूरज है, एक दोस्त का जन्मदिन था, वहीं देर लग गई, आप इस समय कैसे?” छतरी वाले ने बात की शुरुआत की।
“मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, टैक्सी नहीं मिली, ऑटो में जाना उचित नहीं समझा, इसलिए पैदल ही चल पड़ी, पास ही जाना है। अचानक बरसात भी आ गई!”
“चलो अच्छा हुआ, बारिश हुई तो साथ चलने के लिए एक साथी मिल गया, आपका नाम जान सकता हूँ?”
“सॉरी, मुझे अपना नाम पहले ही बताना चाहिए था, मेरा नाम रोशनी है।”
जब तक रोशनी का घर आया, तब तक वे न केवल एक दूसरे के नाम से वाकिफ़ हो गए थे, यह भी जान चुके थे कि दोनों ट्रांसजेंडर थे। बातों-बातों में प्यार का बीज भी अंकुरित हो गया था। मिलते-मिलाते शादी भी हो गई, प्रभु-कृपा से बिना किसी अतिरिक्त डॉक्टरी चिकित्सा के बेटा भी हो गया।
समय की रेतघड़ी की रेत की मानिंद फिसलती गई, बेटा बड़ा होता गया, वे बुजुर्ग होते गए, वही सौम्य-सभ्य बेटा अब उनका प्रकाश बन कर अपने नाम को सार्थक कर रहा था।
— लीला तिवानी