लघुकथा

आस!

आज मनु के पास मिन्नी के मौत की खबर आई, साथ में उन सब बंद चिट्ठियों का पुलिंदा भी, जो उसके बेटे ने मिन्नी तक पहुंचने ही नहीं दीं!
प्रेम विवाह किए हुए मिन्नी और मनु प्रेम को निभा भी रहे थे. प्रेम का निभाव भी आसान कहाँ होता है! राह में गलतफहमियों के रोड़े जो आ जाते हैं! यही गलतफहमियों के रोड़े प्रेम के निभाव की दीवार बन गए! अब मिन्नी बेटे को लेकर कहाँ और मनु कहाँ!
मिन्नी को भले ही मनु का तिरस्कार चुभा या नहीं, बेटे का मन तो भ्रमित हो ही गया था! लेटरबॉक्स की चाबी अपने पास रखकर मनु की कोई भी चिट्ठी उसने मां तक पहुंचने नहीं दी!
मिन्नी के विरह में मनु मायूस तो था ही, अब तो उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी. अब न तो मिन्नी थी और न ही बेटे से मिलने की आस!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

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