आस!
आज मनु के पास मिन्नी के मौत की खबर आई, साथ में उन सब बंद चिट्ठियों का पुलिंदा भी, जो उसके बेटे ने मिन्नी तक पहुंचने ही नहीं दीं!
प्रेम विवाह किए हुए मिन्नी और मनु प्रेम को निभा भी रहे थे. प्रेम का निभाव भी आसान कहाँ होता है! राह में गलतफहमियों के रोड़े जो आ जाते हैं! यही गलतफहमियों के रोड़े प्रेम के निभाव की दीवार बन गए! अब मिन्नी बेटे को लेकर कहाँ और मनु कहाँ!
मिन्नी को भले ही मनु का तिरस्कार चुभा या नहीं, बेटे का मन तो भ्रमित हो ही गया था! लेटरबॉक्स की चाबी अपने पास रखकर मनु की कोई भी चिट्ठी उसने मां तक पहुंचने नहीं दी!
मिन्नी के विरह में मनु मायूस तो था ही, अब तो उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी. अब न तो मिन्नी थी और न ही बेटे से मिलने की आस!
— लीला तिवानी