फुर्सत और वादा
वादा था सात जन्मों तक साथ निभाने का,
बिना बताए साथ छोड़ नहीं जाने का
सोती पत्नी को देख बूढ़ा डर गया,
सांस चेक करने से पहले सिहर गया,
मगर बुढ़िया जीवित व सजान थी,
पति के लिए मंत्र व अजान थी,
बूढ़ा बोला तेरे सिवा दुनिया में मेरा कौन है,
हमें भुला सारा रिश्ता मौन है,
बेटे-बहू को कमाने से फुर्सत नहीं,
मोबाईल वाले पोते पोतियों को
अपने दादा दादी की जरूरत नहीं,
बुढ़िया बोली बुढ़ऊ तुझे छोडूंगी नहीं,
तुझसे कभी मुंह मोडूंगी नहीं,
मगर अगले दिन बुढ़ऊ जगाता रह गया,
बुढ़िया को आवाज लगाता रह गया,
मगर बुढ़िया जा चुकी थी बहुत दूर,
साथ लेती गयी साथ न छोड़ने का फितूर,
वादा भी टूटा,फुरसतियों का साथ भी टूटा,
अपनों के साथ छाया भी रूठा,
उस बूढ़े का शक्ल मुझे याद आ रहा है,
शायद मेरी कहानी को
समय आज पहले दिखा रहा है।
— राजेन्द्र लाहिरी