भाषा-साहित्य

सोचा आज तकलीफ को तकलीफ का एहसास करा दू- मैं

सोचा आज तकलीफ को तकलीफ का एहसास करा दू- मैं उफ्फ़ कितना दर्द है इन लिखी पंक्तियों मे। एक लेखक की इन पंक्तियों को पढ़ जैसे कलेजा ही फटने लगा ऐसा लगा भीतर ही भीतर एक दर्द भरी चीख दब के रह गई है जो चीख-चीख कर कहना तो बहुत कुछ चाहती पर कह नहीं पा रही अपने अंतर्मन की वेदना को बस घुटा जा रहा अपनी खामोशियों के बोझ तले। जरूरी नहीं की हर एक वेदना सिर्फ मोहब्बत तले ही मिले कुछ वेदना जिंदगी के जिम्मेदारी के बोझ तले भी मिल जाती है। जिम्मेदारी जिसे वहन करने के लिये जी तोड़ मेहनत के बाद भी अक्सर किस्मत ऐन मौके पर धोखा भी दे जाती है तब इंसान अकेला निरस सी भरी जिंदगी जी तो रहा है परंतु सिर्फ जी रहा है। जिंदगी का बिना रसोस्वाद लिये। हार कर गिर जाता बहुत बार तो खुद से ही, फिर उठने की कोशिश कर अभी कुछ चलना शुरू ही करता की चहु ओर से उसके कानों में दुनिया के सुनाई देने वाले ताने उसे उठाने के बजाय उसे निराशा के दलदल मे धकेलना का काम ही करते। लेखक फिर कचोटते हुए चाह कर भी उठ नहीं पाता। जब कोई अपने भीतर के दर्द भरे उबाल को सबके समक्ष रखने में असमर्थ होता है तो एसे में उसके जीवन में उसकी सच्ची साथी बनकर जो उसके पास ईश्वर की परमकृपा से प्राप्त होती है वो है उसकी कलम। 

बिल्कुल सही सुना एक लेखक/लेखिका के लिये उसका जो सच्चा साथी या कह लो जो उसकी हमसफ़र है वो है उसकी धारदार कलम जो उन लोगों को जवाब देती जिन्होंने उनके उस हृदय पर आघात किया था वो भी उस समय जब उसे ऊपर उठाने वालों, सहयोग करने वालों का साथ चाहिए था। जब उसे अपनेपन, सम्मान, ममता की जरूरत थी परंतु हुआ क्या उस समय ठीक उसी के विपरित। तब लेखक अपने अंतर्मन कि वेदना जो सबको कहना चाहता पर बिना सहयोग,  हताश हो किसी से कह नहीं पाता। तब कलम पाकर वो अपने भीतर की हर एक वेदना को लिखकर शब्दों में बयां कर दुनिया के समक्ष रखता तब वही लोग जो उसे कोसते थे वही उसके लिखे हर एक दर्द, पीड़ा, असहाय, आंसूओं को शब्दों में पढ़ वाह-वाही करने लगते। उसका हौसला अफजाई करते। उसे कहते वाह क्या बात है। वगैरह-वगैरह। मतलब जो बात एक आम इंसान सीधे-सीधे कहकर सभी से दुत्कार ही पाया, जिसे फालतू इंसान समझ सभी ने अपने घमंड तले रौंद डाला। जिसका सब ने मज़ाक उड़ाया आज वही लोग उसके उसी दर्द, पीड़ा पर वाह-वाही कर रहे और कहते उफ्फ़ कितना दर्द है तेरे भीतर। मतलब यहॉं उस आम इंसान की नहीं उसके दर्द भरे जज़्बात, उसकी कलम की इज्जत है। उसको मिले लेखक नाम को लोग इज्जत देकर प्रोत्साहित कर रहे। ये है एक लेखक के अंतर्मन के भाव जो वो रूह से लिखता है । अधिकतर लेखक के भाव उसके जीवन के असल किस्से ही होते हैं पाठक को लगता लेखक सिर्फ यहॉं-वहॉं के नजारे देखकर या यहॉं-वहॉं के लोगों से प्रेरित होकर लिखता है दरअसल ऐसा नहीं है हर विषय पर लेखक की लिखी कविता, लेख या कहानी, ग़ज़ल वगैरह काल्पनिक हो, हो सकता है  लेखक ने अगर दर्द पर लिखा हो तो हो सकता है वो भीतर से टूटा हुआ गहरे दर्द या सदमे में हो। अगर प्रेम पर लिखा हो तो वो आज पूरी तरीके से वात्सल्य, प्रेम में डूबा श्रृंगार रस सजा रहा हो। या विभिन्न भावों अनुसार वो महसूस कर लिख रहा हो। इसलिए लेखक के लिखे हर एक भाव को गहराई से पढ़ आप एक लेखक के अंतर्मन को बहुत ही बेहतरीन तरीके से समझ सकते हो। 

सोचा आज तकलीफ को तकलीफ का एहसास करा दू- मैं

यही सोच आज मैंने भी स्वयं के साथ-साथ एक लेखक के हृदय के उन तारों को पाठकों के रूह से छूने की कोशिश की है शायद आज तकलीफ को तकलीफ का एहसास करवाते-करवाते शायद इतने वर्षों में मैं दर्द-ए शायरा आप सभी के समक्ष उभर आई है। 

हर एक शायर/शायरा जिंदगी के हर एक पहलुओं को सजाने की कला नहीं पाता परंतु दर्द ए शायर/शायरा अपनी रूह पर लगी चोट बहुत ही बेहतरीन तरह सजा कर परोस सकता है और कुछ लेखक तो ऐसे होते की अपने ही सजाए शब्दों से पाठक की रूह को छलनी कर देते हैं। यही है विभिन्न विषयों पर विभिन्न लेखकों की प्रतिक्रिया का सफर की –

कलम जो पाई लेखक ने वो आम से खास हो गये।।

शब्दों से जरा खेला क्या सभी के दिलों के पास हो गये।।

— वीना *तन्वी*

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित

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