गीत
कदम बढ़ायें चलते जाएँ रुकने का क्या काम
सुबह भी आएगी राहों में कब तक रहेगी शाम
गढ़ते आये स्वप्न सलोने सुंदर अब तक नैना
मन ही मन बुनते आए जो पल भावी दिन रैना
पूरन कैसे होंगे जो चलना ही छोड़ दिया अब
हार नहीं मानेंगे टूटे मन को जोड़ दिया जब
क्षितिज के परे जाकर देखो दृश्य वही अभिराम
कदम बढ़ायें चलते जाएँ रुकने का क्या काम
हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश हास्य रुदन में
जीवन का रस है आनंद में कभी करुण क्रंदन में
एक स्वाद में कैसे बीते जगती की यह माया
मुस्कानों का उजियारा हो जब जब तम का साया
दू:ख और सुख दोनों मिलकर बनता मानव अविराम
कदम बढ़ायें चलते जाएँ रुकने का क्या काम
तुम्हीं प्रभा हो जीवट वाली रचना अनुपम देखो
कठिनाइयों से लड़ते जाना तुमको हरदम देखो
हिम्मत का दामन ना छूटे ध्यान बनाये रखना
कदम दर कदम पर हौसलों के गीत गाये रखना
जब तक मंज़िल पा ना जाओ तो कैसा आराम
कदम बढ़ायें चलते जाएँ रुकने का क्या काम
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”