पर्यावरण

प्लास्टिक, जीवन में  धीरे धीरे घुलता जहर, बुझती ज़िंदगी,

एक जागरूकता बढ़ाने वाला आलेख
आज के आधुनिक युग में प्लास्टिक हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। चाहे पानी की बोतल हो, खाने की पैकिंग, या फिर घर की सजावट—हर जगह प्लास्टिक ने अपनी जगह बना ली है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस प्लास्टिक को हम इतनी आसानी से इस्तेमाल कर रहे हैं, वही धीरे-धीरे हमारे जीवन में ज़हर घोल रहा है?
प्लास्टिक का बढ़ता जहर,
प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है, जो सैकड़ों सालों तक नष्ट नहीं होता। जब हम प्लास्टिक का कचरा फेंकते हैं, तो वह मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित करता है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण (माइक्रोप्लास्टिक) हमारे खाने-पीने की चीज़ों में मिलकर हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं। रिसर्च बताती है कि इन माइक्रोप्लास्टिक के कारण कैंसर, हार्मोन असंतुलन, और कई तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं।
हर चीज़ प्लास्टिक की!
आज बाज़ार में मिलने वाली लगभग हर चीज़ में प्लास्टिक है—दूध की थैली, सब्ज़ी का थैला, बच्चों के खिलौने, मोबाइल कवर, फर्नीचर, और यहां तक कि हमारे कपड़ों में भी। यह प्लास्टिक धीरे-धीरे हमारे जीवन में घुलता जा रहा है, और हम अनजाने में इसे स्वीकार कर चुके हैं।
प्लास्टिक के दुष्परिणाम,
प्राकृतिक संसाधनों का नाश, प्लास्टिक कचरे से नदियाँ, समुद्र और ज़मीन प्रदूषित होती है, जिससे जलीय जीव और पशु-पक्षी मर रहे हैं।
मानव स्वास्थ्य पर असर, प्लास्टिक में मौजूद रसायन शरीर में जाकर गंभीर बीमारियाँ पैदा करते हैं।
जलवायु परिवर्तन,प्लास्टिक के उत्पादन और नष्ट करने के दौरान भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं।
समाधान,सही कदम बढ़ाने की ज़रूरत
अब समय आ गया है कि हम सब मिलकर प्लास्टिक के इस बढ़ते जहर को रोकें। इसके लिए कुछ आसान लेकिन असरदार कदम उठाए जा सकते हैं।
प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करें, जब भी संभव हो, कपड़े या जूट के थैले का इस्तेमाल करें।
जागरूकता फैलाएँ,अपने परिवार, दोस्तों और समाज में प्लास्टिक के नुकसान के बारे में जागरूक करें।
प्राकृतिक विकल्प अपनाएँ,बांस, कागज, मिट्टी आदि से बनी चीज़ों को प्राथमिकता दें।
सरकार और प्रशासन से सहयोग, प्लास्टिक प्रतिबंध और कड़े कानूनों का समर्थन करें।
प्लास्टिक का बढ़ता जहर हमारे जीवन और आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा बन चुका है। अगर हम आज सचेत नहीं हुए, तो कल बहुत देर हो जाएगी। आइए, हम सब मिलकर प्लास्टिक-मुक्त समाज की ओर कदम बढ़ाएँ और अपने जीवन को, अपने पर्यावरण को बचाएँ।
“परिवर्तन की शुरुआत अपने आपसे होती है,आज ही प्लास्टिक के खिलाफ एक छोटा कदम उठाएँ, कल एक बड़ी क्रांति बन जाएगी!”स्वस्थ जीवन के लिए ये कदम महत्वपूर्ण भूमिका साबित होगा। हैं खुद को तो बचाना है,मगर आने वाली नस्लों की सेहत का भी ध्यान रखना होगा।

— डॉ. मुश्ताक अहमद शाह सहज

डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

पिता का नाम: अशफ़ाक़ अहमद शाह जन्मतिथि: 24 जून जन्मस्थान: ग्राम बलड़ी, तहसील हरसूद, जिला खंडवा, मध्य प्रदेश कर्मभूमि: हरदा, मध्य प्रदेश स्थायी पता: मगरधा, जिला हरदा, पिन 461335 संपर्क: मोबाइल: 9993901625 ईमेल: dr.m.a.shaholo2@gmail.com शैक्षिक योग्यता एवं व्यवसाय शिक्षा,B.N.Y.S.बैचलर ऑफ़ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस. बी.कॉम, एम.कॉम बी.एड. फार्मासिस्ट आयुर्वेद रत्न, सी.सी.एच. व्यवसाय: फार्मासिस्ट, भाषाई दक्षता एवं रुचियाँ भाषाएँ, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी रुचियाँ, गीत, ग़ज़ल एवं सामयिक लेखन अध्ययन एवं ज्ञानार्जन साहित्यिक परिवेश में रहना वालिद (पिता) से प्रेरित होकर ग़ज़ल लेखन पूर्व पद एवं सामाजिक योगदान, पूर्व प्राचार्य, ज्ञानदीप हाई स्कूल, मगरधा पूर्व प्रधान पाठक, उर्दू माध्यमिक शाला, बलड़ी ग्रामीण विकास विस्तार अधिकारी, बलड़ी कम्युनिटी हेल्थ वर्कर, मगरधा साहित्यिक यात्रा लेखन का अनुभव: 30 वर्षों से निरंतर लेखन प्रकाशित रचनाएँ: 2000+ कविताएँ, ग़ज़लें, सामयिक लेख प्रकाशन, निरन्तर, द ग्राम टू डे, दी वूमंस एक्सप्रेस, एजुकेशनल समाचार पत्र (पटना), संस्कार धनी (जबलपुर),जबलपुर दर्पण, सुबह प्रकाश , दैनिक दोपहर,संस्कार न्यूज,नई रोशनी समाचार पत्र,परिवहन विशेष,समाचार पत्र, घटती घटना समाचार पत्र,कोल फील्ड मिरर (पश्चिम बंगाल), अनोख तीर (हरदा), दक्सिन समाचार पत्र, नगसर संवाद, नगर कथा साप्ताहिक (इटारसी) दैनिक भास्कर, नवदुनिया, चौथा संसार, दैनिक जागरण, मंथन (बुरहानपुर), कोरकू देशम (टिमरनी) में स्थायी कॉलम अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित प्रकाशित पुस्तकें एवं साझा संग्रह साझा संग्रह (प्रमुख), मधुमालती, कोविड, काव्य ज्योति, जहाँ न पहुँचे रवि, दोहा ज्योति, गुलसितां, 21वीं सदी के 11 कवि, काव्य दर्पण, जहाँ न पहुँचे कवि (रवीना प्रकाशन) उर्विल, स्वर्णाभ, अमल तास, गुलमोहर, मेरी क़लम से, मेरी अनुभूति, मेरी अभिव्यक्ति, बेटियां, कोहिनूर, कविता बोलती है, हिंदी हैं हम, क़लम का कमाल, शब्द मेरे, तिरंगा ऊंचा रहे हमारा (मधुशाला प्रकाशन) अल्फ़ाज़ शब्दों का पिटारा, तहरीरें कुछ सुलझी कुछ न अनसुलझी (जील इन फिक्स पब्लिकेशन) व्यक्तिगत ग़ज़ल संग्रह: तुम भुलाये क्यों नहीं जाते तेरी नाराज़गी और मेरी ग़ज़लें तेरा इंतज़ार आज भी है (नवीनतम) पाँच नए ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन सम्मान एवं पुरस्कार साहित्यिक योगदान के लिए अनेक सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त पाठकों का स्नेह, साहित्यिक मंचों से मान्यता मुश्ताक़ अहमद शाह जी का साहित्यिक और सामाजिक योगदान न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि पूरे हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के लिए गर्व का विषय है। आपकी लेखनी ने समाज को संवेदनशीलता, प्रेम और मानवीय मूल्यों से जोड़ा है। आपके द्वारा रचित ग़ज़लें और कविताएँ आज भी पाठकों के मन को छूती हैं और साहित्य को नई दिशा देती हैं।

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