कविता

आएंगे जरूर अच्छे लोग

संभावित निश्चित हार को जानते हुए भी
हर हालात मुश्किलात में भी
सीना तानकर खड़े हो जाना
रही है मेरी फितरत,
न लालच,न झोल,न कोई गंदी हरकत,
सालों साल से लड़ता आया हूं,
न समझना कि फितूर बन छाया हूं,
जातिय अन्याय और अत्याचार बर्दाश्त नहीं,
दिन अभी चढ़ रहा है हो रहा सूर्यास्त नहीं,
मंगल अमंगल की बातें मैं नहीं सोचता,
समझता हूं मानव को मानव नहीं उसे नोचता,
है ताकत जिनके पास शांति उन्हें स्वीकार नहीं,
दूध जब गरम न हो कैसे बन पाएगा दही,
प्यार व मोहब्बत उन्हें यदि अंगीकार नहीं,
खोखले वादे क्यों सुनें हमें भी स्वीकार नहीं,
पीठ पर चलाते गोली सीना क्यों न दागते,
संविधान के अनुच्छेदों से दूर क्यों हो भागते,
सामने खड़ा मिलूंगा हर युग हर काल,
उड़ा देंगे धज्जियां सब लेंगे हम संभाल,
लोकतांत्रिक देश में बना रहेगा लोकतंत्र,
आएंगे अच्छे लोग बुराइयों का करने अंत।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554

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