गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कोई तो है जो ख़ुदा को भी झुका लेता है
औरों के ग़म भी कलेजे से लगा लेता है
कोई अहसास बड़प्पन का जाग उठता है
जब कोई अदब से सर अपना झुका लेता है
जब हताशा में कोई रास्ता नहीं मिलता
किसी का हाथ डूबने से बचा लेता है
किसी को ज़िंदगी लगती है सज़ा की मानिंद
कोई ता उम्र ही जीने का मज़ा लेता है
जो प्यार करता, जताता नहीं है जीवन-भर
हमारे ज़ख्मों को सीने में छुपा लेता है

— ओम निश्चल

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