गीतिका
चाँद बोला चाँदनी से रात बाकी है |
मत छुपा मुख बादलो में बात बाकी है ||
आग आँखों में लिए बिजली गरजती है |
बादलो की आँख से बरसात बाकी है ||
देख लो बारिश बिना धरती पड़ी सूखी |
भुखमरी से मौत का आघात बाकी है ||
बेटिया आंगन में बस तब तक चहकती हैं |
द्वार आनी जब तलक बारात बाकी है ||
हम जमाने के विषय में जानते बहुत |
पर हमारा खुद से आत्मसात बाकी है ||
वो हमें जीने नहीं देगें कभी सुख से |
हादसो का तो अभी उत्पात बाकी है ||
— शालिनी शर्मा