कौन यहां समझदार है
कुछ सवाल हैं
न जिनके जवाब हैं
क्यूं रात दिन ऐसे
करता तू मलाल है।
यही ज़िन्दगी का सार है
कौन यहां समझदार है।
सत्य की राह पकड़
न खुद को ऐसे जकड़
निकल इस कश्मकश से
न मुँह फुला और अकड़।
बनता पल में दुश्मन यार है
कौन यहां समझदार है।
उम्र ये गुज़रती जा रही
बातों में निकलती जा रही
कुछ होश कर कुछ सोच कर
क्यों संतुष्टि नहीं हो पा रही।
माया में लिपटा संसार है
यहाँ कौन समझदार है।
ग़लती हम सब हैं करते
फिर भी न हम झुकते
दूसरों को हराने में
हम सौ बार न थकते।
कैसे करे कोई ऐतवार है
कौन यहां समझदार है।
— कामनी गुप्ता