दोहा- योग दिवस
योग दिवस पर क्यों भला, मचा रहे सब शोर।
इससे पहले कब भला, खुली आँख थी भोर।।
सपना है या सत्य में, नींद खुली है आज।
दिवस आज है योग का, इसके पीछे राज।।
वर्षों से देखा नहीं, सूर्योदय का भोर।
आज मुझे ऐसा लगे, योग मचाए शोर।।
लिए चटाई हाथ में, आ पहुँचे यमराज।
योग प्रथम के बाद ही, करने दूजा काज।।
तड़के ही यमराज जी, आये मेरे द्वार।
ज्ञान मुझे देने लगा, करो योग सरकार।।
योग दिवस पर कीजिए, योग मित्र यमराज।
तन मन स्वस्थ निरोग हो, सफल आपका काज।।
गले उतरता है नहीं, दिखता जो बदलाव।
जन मानस को योग से, सचमुच हुआ लगाव।।
योग भगाता रोग है, तन मन में उत्साह।
नित्य करे जो नियम से, पाता खुशी अथाह।।
लाल किले पर नित्य ही, योग करें यमराज।
रामदेव जी सोचते, अब मेरा क्या काज।।
क्या करना है योग का, समय करें बेकार।
सुबह-सुबह बीबी करे, नाहक ही तकरार।।
जो करते नित योग हैं, उन्हें नहीं है ज्ञान।
आलस से अच्छा नहीं, कुछ भी है आसान।।
योग दिवस पर सब करें, देखा-देखी खूब।
मजबूरी में क्या करें, बने योग महबूब।।
आलस छोड़ो मित्र वर, करते रहिए योग।
दिनचर्या में जोड़िए, दूर रहेगा रोग।।
योग मित्र है आपका, इससे करिए प्यार।
नित्य भोर उठ कीजिए, मत करिए तकरार।।