गीत/नवगीत

पिता के चरणों में

मैं हूँ तात तुम्हारी रचना।
नहीं छोड़कर इन चरणों को,
और कहीं भी मुझको बसना।

अपनी नींदे देकर तुमने, कितनी मेरी रात सँवारी
काल तानकर आया सीना,हारी तुमसे हर बीमारी
तुमसे ही सीखा है मैंने, हर मुश्किल में खुलकर हँसना
मैं हूँ तात तुम्हारी रचना।1।

तान शीश कर्तव्य का छाता, मेह – घाम से मुझे बचाया
नेह – ताप को देख तुम्हारे, सरदी में दिनकर शरमाया
फ़ौलादी बाँहों के आगे, मुश्किल था संकट का बचना
मैं हूँ तात तुम्हारी रचना। 2।

जग के पालनहार से बढ़कर, मैंने तात तुम्हीं को माना
ब्रह्मा – विष्णु – शिव ना जानू, मैंने बस तुमको पहचाना
बसा छबि पलकों में अपनी, गाये गीत तुम्हारे रसना
मैं हूँ तात तुम्हारी रचना। 3।

ठोकर लगी मेरे कदमों को, पर तुमने ना मुझे उठाया
तूफानों से टकराने का, पहला सबक यही समझाया
चक्रव्यूह कैसा हो सम्मुख, तुम बोले उसमें न फँसना
मैं हूँ तात तुम्हारी रचना। 4।

इन काँधों पर चढ़ा जो मैं तो, लगा हिमालय बौना मुझको,
हृदय की गहराई इतनी कि, सात समंदर थाह ना जिसको
इन बाँहों के पलने से मैं, चाहूँ कभी न बापू हटना
मैं हूँ तात तुम्हारी रचना।5।

वन – उपवन की कली सजाकर, तात आज चरणों में धर दूँ
अपने संचित पुण्यों का मैं, कण – कण तुम पर अर्पित कर दूँ
नहीं चाहता आज तात मैं, पास कोई भी वैभव रखना
मैं हूँ तात तुम्हारी रचना। 6।

— शरद सुनेरी

Leave a Reply